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अध्याय में मिलता है। सुबुद्धि नामक प्रधान अपने राजा को समझा रहा था कि पदार्थ-पुद्गल की पर्याय बदलती रहती है। यह उसका स्वभाव है। यानि पुद्गल के गुण बदलते रहते हैं | जब राजा को ऐसा कुछ समझ में नहीं आया तो सुबद्धि ने किसी प्रत्यक्ष उदाहरण से समझाना उचित समझा । कुछ महीने बाद, उसने शहर की गंदी नाली, जिसमें शहर का गंदा पानी इकट्टा होता था, के पानी को निथार कर, साफ व संशोधित/संस्कारित कर के राजा को अनजाने में पिला दिया। राजा उस पानी की उत्कृष्ट मधुरता चखकर पूछने लगा कि इतना स्वच्छ और मीठा पानी कौन से कुएँ से लाया गया है। इस प्रसंग से सुबद्धि यह आगमिक तथ्य आसानी से समझा सका कि पुद्गल की पर्याय व गुण बदलते रहते हैं। इस स्वभाव के कारण अमनोज्ञ पदार्थ भी मधुर और मनोज्ञ बन जाते हैं।
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