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________________ कोषाणु (पानी के) को समझने व उसमें झाँकने की 'मूल-शोध व जाँच-पड़ताल करने की चुनौती को स्वीकार करके वे आगे आयेंगे। मानव-जाति के लिए इसमें छिपी प्रबल संभावनाओं के मद्देनजर, इस आलेख द्वारा वैज्ञानिकों के सघन प्रयासों का आह्वान किया जाता है। उपसंहार सचित्त अप्काय सामूहिक याददाश्ती का वाहक बनता है तथा उस सामूहिक स्मृति का प्रभाव भी होम्योपैथी पद्धति में प्रयोगों से सिद्ध होता आ रहा है। लेकिन यह स्मृति वास्तविक रूप से कैसे संचित होती है तथा 'सूक्ष्म' का 'स्थूल' पर किस पद्धति से नियंत्रण होता है, अभी भी गहन चिन्तन व प्रायोगिक अनुसंधान का विषय है। संदर्भ व धन्यवाद ज्ञापन: 1. बहुश्रुत पं. पूज्य प्रकाशमुनि जी व पूज्य लक्ष्मीमुनि जी द्वारा जोधपुर व दुर्ग में 2002 और 2003 में आगम सम्मत समाधान। डॉ. कुलवन्तसिंह व डॉ. हरेश्याम वर्मा (जमशेदपुर) के साथ विचार-विमर्श। CBSE की रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान की पाठ्य पुस्तकें । पिछले 3 वर्ष के साप्ताहिक में प्रकाशित लेख। श्री प्रभुनारायण मिश्र द्वारा 'नया ज्ञानोदय' भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली मार्च 2004 में प्रकाशित लेख । Dr. Jeoraj Jain, “Principle of working of Homeopathy”, Homeopathy Heritaze, New Delhi, Feb. 2004 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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