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________________ 54 ARDHA-MAGADHE READER. तमेव अविजाणंता, अबुद्धा बुद्धमाणिणो । बुद्धा मो त्ति य मन्नंता, अंतर ते समाहिए ॥२॥ ते य बीमीदगं चेव, तमुद्दिस्सा य जंकडं । भोच्चा झाण झियायंति, अखेयन्ना समाहिया ॥२६॥ जहा ढंका य कंका य, कुखला मग्गुका सिही। मच्छेसण झियायंति, माण ते कलुसाधर्म ॥२०॥ एवं तु समणा एगे, मिच्छदिट्ठी प्रणारिया। विसएसण झियायंति, कंका वा कलुसाहमा॥२८॥ सुद्धं मग्गं विराहित्ता, इहमेगे उ दुम्मती। उम्मग्गगता दुक्खं , घायमेसंति तं जहा ॥२९॥ जहा पासाविणि नावं, जाइबंधो दुरुहिया । इच्छई पारमागंतुं, अंतरा य विसीयति ॥३०॥ एवं तु समणा एगे, मिच्छदिट्टी प्रणारिया। सोयं कसिणमावन्ना, आगंतारो महाभयं ॥३१॥ इमं च धम्ममादाय, कासवेण पवेदितं । तरे सोयं महाघोरं, अत्तत्ताए परिश्वम् ॥३२॥ विरए गामधम्मेहिं, जे केई जगई जगा । तेसिं अत्तुवमायाए, थाम कुव्वं परिवए ॥३३॥ अइमाण च मायं च, तं परिन्नाय पंडिए । सम्वमेयं णिराकिच्चा, णिव्वाण संधए मुणी ॥३४॥ संपर साहुधम्म , पावधम्म हिराकरे । उवहाखवीरिए भिक्खू, कोहं माणं न पत्थर ॥३॥ ने य बुद्धा अतिकता, जे य बुद्धा अणागया । संति तेसि पइट्टाण, भयाण जगतो जहा ॥६॥ 1 D अस . [] स० 2D .गु. 3 D• हा 48.ई 5 D og'o 6 S in some Mss. the second half reads as groot fara गिलास्त, अगिलाए समाहिर । 7 D var. lec. og. DODHIME Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006743
Book TitleArdha Magadhi Reader
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB D Jain
PublisherShri Satguru Publications
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size9 MB
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