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________________ 42 ARDHA-MAGADHÍ READER. बंभलोए कप्पे देवत्ताए उबवत्तारो भवति, तहिं तेसिं गई तहिं तेसिं दस सागरोवमाइ ठिई पण्णता, सेसं तं चैव (१२) ( सू० ३८ ) ॥१३॥ तेरा काले' तेण समरणं अम्मंडस्स परिवा यगस्स सत्त अंतेवासिसयाइ गिम्हकालसमयंसि जे मूलमासंसि गंगाए महानईए उभओ कूले कंपि - ल्ल पुरा गयरा पुरितमालं यरं संपट्टिया विहा राम ॥१४॥ तर तेसि परिव्वायगाणं तोसे अगामियास हिरणोवायाए दीहमदास अडवीस कंचि देतंतरमणुपत्ता से पुव्वग्गहिए उदय अणुपुवेण परिभुज - माणे झोणे ॥१५॥ तर ते परिव्वायगा भीगोदगा समाणात - रहार परिब्भममाणा २ उदगदातारमपरसमाया अरणमणं सद्दावेति २त्ता एवं व्यासी “ एवं खलु देवागुप्पिया! अम्हं इमी से अगामि आए जाव अडवीए कंचि देसं तर मणुपत्ताण' से पुव्वग्गहिए उदय भीणे, तं सेयं खलु देवागुप्पिया ! अम्हं इमीसे अगामियास अडवीस उदगदातारस्स सव्वच समंता मग्गणगवेसण करि तर तिकट्टु अण्णमण्णस्स अंतिस एश्रमटुं पडिसु गांति रक्तातीसे अगामियास जाव अडवीस उदग दातारस्स सव्वत्र समंता मग्गणगवेसण करेंति २ ता उदगदातारमलभमाणा दोच्च पि अण्णमरणं सद्दाति ॥१६॥ ,, अण्णमण्णं सदावित्ता एवं वयासी " इह ' देवापिया ! उदगदातारो गत्थि, तं गो खलु कप्पइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006743
Book TitleArdha Magadhi Reader
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB D Jain
PublisherShri Satguru Publications
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size9 MB
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