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________________ हे कुमारे। 37 याइ आरोहेह जाव कालं प्रणवकं खमाणे विहर ॥६॥ तर खं ते थेरा भगवंता मेहस्स अणगाररूस अगि are duraडियं करेति । तर ण से मेहे अणगारे दुवालस वासाई सामण्ण परियागं पाठणित्ता मासि याए संलेहणाए अप्पाणं भूषित्ता सहिभत्ताइ अणसगाए छेदेत्ता आलोइयपडिते उद्धरियसल्ले समाहिपत्ते आणुपुवेणं कालगर ॥१॥ तर ते थेरा भगवंता मेहं अणगारं कालगयं पासंति २ ता परिणिव्वाणवत्तियं कासगं करेति । तस्स मेहस्स आयारभंडं गिरहंति ५ त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति २ एवं वयासी "एवं खलु देवागुप्पियाण' अंतेवासी मेहे नामं अणगारे परिभद्दर' विणीए से गं देवागुप्पिएहिं अब्भरणुणाए समाणे जाव अणुपुवेण कालगए ॥ एस ग देवाप्पिया! मेहस्स अणगारस्स आयारभंड ॥११॥ , तर भगवं गोय मे समय भगवं महावीरं एवं वयासी, “से ण' भंते! मेहे अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कहिं उववरले ?" ॥ " एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी मेहे नामं अणगारे विजय महाविमाणे देवत्ताए उववरणे" ॥ "एस ण' भंते ! मेहे ताथी देवलोगा ओ चहत्ता कहिं गच्छद्दिह कहिं उववज्जिहि ?" गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुजिमाfer परिखिवाहिर सम्बदुक्खा तं काहिह” ॥२॥ 1 D अगिलाव 28 go 3 STO Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006743
Book TitleArdha Magadhi Reader
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB D Jain
PublisherShri Satguru Publications
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size9 MB
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