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________________ धैर्य सुख एवं दुःख जीवन के अभिन्न अंग हैं। जो व्यक्ति अनुकूल एवं प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में शान्त रहकर समभाव धारण करता है वह निश्चित ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है । ३६वें सम्पद्विपदासत्पुरुषसमतावर्णनाधिकार में वर्णित नरविक्रमकुमार के कथानक द्वारा यही संदेश दिया गया है कि विपत्ति आने पर सत्पुरुष धैर्य को नहीं छोड़ते तथा समृद्धि में गर्वरहित होते हैं। राजकुमार नरविक्रम के जीवन में अनेक विपत्तियाँ आती है उन्हें सपरिवार नगर त्यागकर एक मालाकार के घर रहकर माला का व्यवसाय करना पड़ता है । वहाँ वह पुत्र आदि से भी बिछुड़ जाते हैं । किन्तु वे अपना धैर्य नहीं खोते हैं। समय बदलता है। नरविक्रम कुमार पुनः राजा बनते हैं और पत्नी तथा पुत्रों से उनका मिलन होता है। वस्तुतः जीवन में आने वाले कष्टों को राग-द्वेष से रहित होकर सहन करने वाला व्यक्ति कभी सम्यक् पथ से विचलित नहीं होता है । आख्यानकमणिकोश में कहा है कि कर्मवश प्राप्त दुःखों को धैर्यवान व्यक्ति साम्य भाव से सहन करते हैं (मू.गा. ५३) । इस सन्दर्भ में पार्श्वप्रभु तीर्थंकर महावीर तथा गजसुकुमारल के दृष्टान्त वर्णित हैं। इस महान आत्माओं ने जीवन में आने वाले दुःसह्य कष्टों को समभावपूर्वक सहन कर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया । वर्तमान युग में कष्टों से घबराकर उन्मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को के लिए ये कथानक निश्चित ही सन्मार्ग पर चलने की सत्प्रेरणा प्रदान करते हैं। अजाति एवं अवर्णवाद ऊँच-नीच, जाति, धर्म आदि के आधार पर व्यक्ति का विभाजन जैन परम्परा मान्य नहीं रहा है। उत्तराध्ययन (२५.१९) में स्पष्ट रूप से कहा है - कर्म से ही व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र होता है, जन्म से नहीं । आचार्य आम्रदेवसूरि ने सवृत्ति आख्यानकमणिकोश के अनेक कथानकों में धार्मिक एकाधिकार के खिलाफ जबरदस्त क्रान्ति से स्वर उद्घाटित कर जातिवाद एवं वर्णवाद का खण्डन किया है। निःसन्देह व्यापक विकास की दृष्टि से आख्यानकमणिकोशवृत्ति के कथानक जातिगत विषमता को त्यागकर जीवगत समानता की दिशा में चलने का उद्बोधन देते हैं। करकण्डु के कथानक में शुभ लक्षणों के आधार पर चाण्डाल पुत्र को राजा बनाने की घटना तत्कालीण समाज में जातिप्रथा के विरुद्ध सामाजिक जागृति का सशक्त प्रमाण है। इसी प्रकार नन्दीषेण, हरिकेशीबल, चित्तसम्भूत आदि के कथानक लोककल्याण एवं विश्वबन्धुत्व की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। " इन कथानकों में व्यक्तिगत पूजा के स्थान पर गुणपूजा तथा जन्मजात उच्चता के स्थान पर कर्मगत श्रेष्ठता को महत्व दिया गया है। इस सभी कथानकों का यही वैश्विक संदेश है कि तप, संयम, त्याग अथवा चारित्र किसी जाति या कुलविशेष की बपौती नहीं है । अपितु हीन जाति में उत्पन्न व्यक्ति भी ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप के पुरुषार्थ से विश्व में बन जाते हैं। नन्दीषेण का कथानक लोकपरक सुधारवाद व शुद्धतावाद की लौ प्रज्वलित कर विश्वमानवता को एक नई दिशा प्रदान करता है । ३२वें धर्मविषयकुलप्राधान्यनिवारक अधिकार में वर्णित हरिकेशी की कथा विशेष रूप से अवलोकनीय है। हरिकेशी का सम्पूर्ण आख्यानक जाति के स्थान पर सत्कर्म की महत्ता को स्थापित करने जगतपूज्य Jain Education International -284 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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