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________________ 33. प्राकृत कथा वाङ्ङ्य में निहित वैश्विक संदेश मानव जीवन के मनोरंजन ज्ञानवर्धन के लिए कथा - साहित्य सर्वोत्तम सरस व सरल साधन है। साहित्य में कथानक की विधा अत्यन्त पुरातन है । सम्भवतः मानव सभ्यता के विकास के साथ - साथ ही यह विधा भी विकसित होती चली गई। कथा - साहित्य का प्राचीनतम रूप लोक कथाओं में प्राप्त होता है। इन कथाओं में कुतूहल एवं जिज्ञासा का भाव इस प्रकार विद्यामान होता है कि श्रोता चाहे ज्ञानी हो या अज्ञानी, बाल हो या वृद्ध, वह इन्हें सुनता चला जाता है। प्राकृत कथा-साहित्य का उद्गमस्थल प्राकृत आगम- साहित्य माना जा सकता है। प्राकृत आगम-साहित्य में धार्मिक आचार, आध्यात्मिक तत्त्व-चिन्तन तथा नीति एवं कर्तव्य का प्रणयन कथाओं के माध्यम से ही किया गया है। दर्शन की गूढ़ से गूढ़ समस्याओं को सुलझाने तथा अपने विचारों व अनुभूतियों को सरलतम रूप से जनसाधारण तक पहुँचाने के लिए तीर्थंकरों, गणधरों एवं अन्य जैनाचार्यो द्वारा कथाओं का ही अवलम्बन लिया गया है। ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, विपाकसूत्र, उत्तराध्ययन आदि ग्रन्थ आगमकालीन प्राकृत कथा ग्रंथों के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। - डॉ. रजनीश शुक्ला, नई दिल्ली प्राकृत कथाओं की सामग्री भी प्रायः जन-जीवन पर आधारित है, अतः इनमें लोकतत्त्व प्रचुर परिमाण में उपस्थित हैं। जहाँ कहीं भी विद्वानों को लोककथा दिखाई दी, उन्होंने उसे अपनाकर साहित्यिक रूप प्रदान कर दिया और इसी शैली ने प्राकृत कथा-साहित्य के विकास को एक नई दिशा प्रदान की। पैशाची प्राकृत में लिखी गुणाढ्य की बृहत्कथा लोक कथाओं का संग्रह ग्रंथ माना गया है। यद्यपि यह कथा ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं है, किन्तु इसके आधार पर परवर्तीकाल में अनेक प्राकृत कथाएँ लिखी गई हैं। कथ् (वाक्यप्रबन्धे)' धातु से अङ् एवं टाप् होकर कथा शब्द बनता है। कथ्यते इति कथा, जो कही जाती है, वह कथा है। भामह' के अनुसार संस्कृति, प्राकृत एवं अपभ्रंश की उस रचना को कथा कहते हैं, जिसमें न तो वक्त्र अपरवक्त्र छन्द हों और न उच्छ्वास। इसमें किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा नायक के चरित्र का वर्णन होता है। आचार्यों ने कथा को कवि - कल्पित एवं आख्यायिका को ऐतिहासिक वृत्त प्रधान कहा है। आख्यायिका' की परिभाषा साहित्यदर्पणकार ने दी है। Jain Education International Y अमर-कोशकार' ने 'आख्यायिकोपलब्धार्थप्रबन्धकल्पना कथा' कहा है। कविराज विश्वनाथ' ने कथा ' को इस प्रकार पारिभाषित किया है. कथायां सरसं वस्तु गद्यैरेव विनिर्मितम् । कचिदत्र भवेदार्या कचिद् वक्त्रापवक्त्रके ।। -270 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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