SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पश्चात्, बळक्कारेण बलात्कारेण, बलिअ बलित, बहुमणिअदि बहुमान्यते, भट्टिपुत्ते भार्तृपुत्र, भंशड्दव्वा भ्रंशयितव्या, मं मां, मज्झ मध्य, मडमडाड्श्शं मडमडायिष्याभि, मडे मृत, मत्त मात्र, महुअरं मधुकरं, लव लप, शाळे शाल, ळोशिअ रोषियित्वा वअण वचन, बडुअं वटुकम्, वण्णा वर्णा, वसंच वसन्त, शण्ठाणे संस्थानकः, शत्शवाहवुत्तं सार्थवाहपुत्रं, शीदं सीताम्, शीशं शीर्षं, शीशकवालं शीर्षकपालं, हळअं हृदयं, हो भू इत्यादि - कुल १२६ है । संधि - प्रयोग प्राकृत में संधि की व्यवस्था यद्यपि विकल्प से होती है", तथापि प्रस्तुत प्राकृत में संस्कृत की तरह दीर्घ, वृद्धि और हल् संधि के प्रयोग प्राप्त होते हैं। यथा - दीर्घ संधि - इसमें ह्रस्व या दीर्घ स्वर के बाद हस्व या दीर्घ स्वर आते हैं, तो दोनों के स्थान में दीर्घ स्वर हो जाता है। शकार की प्राकृत से उदाहरण - कामदेव + अणुआण कामदेवाणुआण (पृ.२३), ण + आए (आर्य) = णाए (पृ.१८, २४) वृद्ध - = जब अ के बाद ए आता है, तब अ के स्थान पर ए हो जाता है। यथा पट्टण + एशे = पट्टणेशे (१.१२), आ+ इ = ए = महा+इश्शळं = महेश्शळं (पृ. ३० हल् संधि प्राकृत में म् के स्थान पर सर्वत्र -- अनुस्वार होता है, किन्तु प्रस्तुत प्राकृत में संधि की स्थिति बनने पर वह मृ होकर संस्कृत की भाँति स्वर परे रहने पर स्वर के साथ मिल जाता है। यथा - शीदं + इव = शीदमिव (१.१२), शङ्कळं + इश्शळं = शङ्कळमिश्शळं (पृ. ३०) समास प्रयोग इनके अन्तर्गत संस्कृत की तरह ही अव्ययीभाव, षष्ठीतत्पुरुष, कर्मधारय और समाहार द्वन्द्व समास के प्रयोग निम्नप्रकार परिलक्षित हैं अव्ययीभाव समास - अव्यय और संज्ञा शब्दों का मेल । यथा - सणूपुळा (पृ. १७) - स तथा णूपुळा का मेल । षष्ठीतत्परुष समास - षष्ठी विभक्ति का त्याग कर दो शब्दों का योग । यथा - ळाअश्श शाळे = ळाअशाळे (पृ.-३४), शत्थवाहश्श पुत्तं = शत्थवाहपुत्तं (पृ. ३४), भट्टिणो पुत्त = भट्टिपुत्ते (पृ. २२) आदि । कर्मधारय समास - विशेषण और विशेष्य का संयोग । यथा दाशीएपुत्तीए (पृ. ३५), दाशीएपुत्तीए (पृ. ३४) Jain Education International - 266 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy