SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जगसुन्दरी प्रयोगमाला : - __ जगसुन्दरी प्रयोगमाला मुनि यशः कीर्ति द्वारा निबद्व है । यद्यपि प्रस्तुत ग्रंथ की एक मात्र पाण्डुलिपि में अंतिम पत्र नहीं होने से कवि के संबध में नामोल्लेख के अतिरिक्त विशेष परिचय प्राप्त नहीं होता लेकिन यश:कीर्ति की अप्रभंश भाषा में निबद्ध पाण्डवपुराण एवं चंद्रप्रभपुराण दो कृतियाँ मिलती हैं जो १२ वीं शताब्दी की कृतियाँ हैं और उनमें कवि ने अपने नाम के पूर्व मुनि शब्द लिखा है तथा अपने को भी गुणकीर्ति का शिष्य होना बतलाया है । यशःकीर्ति का गुजरात में से विशेष संबंध रहा था । जगसुन्दरी प्रयोगमाला आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें ४२ अधिकार हैं। प्रारंभ में ग्रंथकर्ता को धर्म , अर्थ एवं काम के लिए आरोग्य होना को अवश्य बतलाया गया है इसीलिए आरोग्यता के उपायों का ज्ञान होना भी आवश्यक माना है धम्मत्थकाममूल ,जम्हा मण आण होई आरोय । जम्हा तस्स उवायं , साहियं तं णिसामेह ॥१॥ इसी तरह अपने ग्रंथ का नाम भी प्रारंभिक गाथाओं में निम्न प्रकार बतलाया है। हारिय चरयसुस्सुव विजयसत्थे अयाण माणोवि । जांगेहि तहय माला भणामि जगसुंदरीणाम ॥२॥ सन्दर्भ ।. पण्डित परमानन्द शास्त्री ,जैन ग्रन्थप्रशस्ति संग्रह २. भट्टारक सम्प्रदाय पृष्ट १५८ ३. नाथूराम प्रेमी , जैन साहित्य और इतिहास पृष्ठ ३८३४ ४. वीरशासन के प्रभावक आचार्य दिल्ली , १९७५ पृष्ठ १८४ ५. जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग-२ पृष्ठ ५२८ ६. राजस्थान का जैन साहित्य , जयपुर ,१९७७ पृष्ठ ,३७ ७. वीरशासन के प्रभावक आचार्य दिल्ली , १९७५ पृष्ठ २१३ ८. जैन ग्रन्थ भण्डार्स इन जयपुर एण्ड नागौर , जयपुर पृष्ठ २९ ९. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा , भाग-३, १९९२ , पृष्ठ ३७८-३८० १०. वही , पृष्ठ ३९२-३९४ ११. भट्टारक सम्प्रदाय लेखांक २८८ १२. अनेकान्त वर्ष ४ , किरण १, पृष्ठ ११३ ।। १३. जैन धर्म का प्राचीन इतिहास , भाग- २ , पृष्ठ ५३४ -५३७ १४. जैन, पी. सी. ; ए डिस्क्रिप्टिव कैटलाग आफ मेनुस्क्रिप्ट्स इन द भट्टारक ग्रन्थ भण्डार , नागौर, जयपुर १९८१ १५. जैन ग्रन्थ भण्डार्स इन जयपुर एण्ड नागौर , जयपुर पृष्ठ ६४ १६. जैन ग्रन्थ भण्डार्स इन जयपुर एण्ड नागौर , जयपुर पृष्ठ ७१ -0-0-0 -249 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy