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________________ आदि भाग- णमिऊण जिणो विज्जो भवभमणेवाहि फट्टणसमत्थो । पुण विजयं पयासमि जं भणियं पुव्वसूरीहिं ॥ १ ॥ गाहाबंधे विरयमि देहिणं रोय णासणं परमं । हरिवालो जं वुल्लई तं सिज्झइ गुरूपसाएण ॥ २ ॥ अन्त भाग- हरडई वार्ति समंजलि तेण सुणीरेण पक्खालिज्जा । लिंगे वाहि पसामइ भासिज्जइ जोय सारोहिं ।। २५५ ॥ हरिवालेण य रइयं पुव्वविजेहिं जं जिणिदिळें । बुहयण तं महु खमियहु हीणहिये जं जि कव्वोय ॥ २५६ ।। इति पराकृत वैद्यक समाप्तम्। जैन भण्डारों में प्राकृत भाषा की कुछ ऐसी कृतियां भी संग्रहित है, जिनका अभी तक प्रकाशन नहीं हो सका है। इनमें पझनन्दि की धर्मरसायन , ढाढसी मुनि की ढाढसी गाथा , मुनि यशकीर्ति की जगसुन्दरी प्रयोगमाला , मुनि धर्मचन्द्र क धर्मचन्द्र प्रबन्ध एवं अजित ब्रम्हचारी की कल्लाणलोयणा के नाम उल्लेखनीय हैं । ये सभी रचनाएं प्राकृत की महत्वपूर्ण कृतियां हैं, ढाढसी गाथा : - राजस्थान के जैन शास्त्रभण्डारों में अभी तक मात्र दो पाण्डुलिपियां प्राप्त हुई हैं। इसकी एक पाण्डुलिपि उदयपुर के संभवनाथ मंदिर में संग्रहित है। दूसरी पाण्डुलिपि जयपुर के बैराठियों के मंदिर में प्राप्त होती है ,जो एक गुटके में अन्य पाण्डुलिपियों के साथ संग्रहित है। इसके कर्ता कोई काष्ठसंघी आचार्य हैं, जो ढाढसी मुनि के नाम से प्रसिद्ध थे। १६वीं शताब्दी के श्रुतसागरसूरि ने षटपाहुड की टीका में इस ग्रन्थ की एक गाथा उद्धृत की है। ढाढसी गाथा में ३८ गाथाएं हैं। हिंसा के सम्बन्ध में कहा है : - रक्खंतो वि ण रक्खइ सकसाओ जइवि जइवरो होई। मारंतो वि अहिंसो कसाय रहिओ ण संदेहो। अर्थात् यदि कोई यतिवर कसाय युक्त है तो जीवों की रक्षा करता हुआ भी जीव रक्षा नहीं करता तथा कसाय रहित जीव जीवों का हनन करता हुआ भी अहिंसक कहा जाता है , इसमें कोई संदेह नहीं। धर्मचन्द्र प्रबन्ध : यह प्राकृत भाषा की एक स्तुति परक लघु कृति है, जिसमें मात्र २० गाथाओं में भट्टारक धर्मचन्द्र का गुणानुवाद किया गया है। -248 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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