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________________ भट्टारक जिनचन्द्र : सिद्धान्तसार भट्टारक शुभचन्द्र के शिष्य भट्टारक जिनचन्द्र १६ वीं शताब्दी के प्रसिद्ध दिगम्बर जैन सन्त थे। इन्होंने सारे राजस्थान में विहार करके जैन-साहित्य एवं संस्कृति के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। भ. जिनचन्द्र की अब तक जो दो कृतियां उपलब्ध हुई उनमें एक संस्कृत एवं एक प्राकृत की रचना है । जिनचतुर्विशतिस्तोत्र संस्कृत की रचना है तथा सिद्धान्तसार प्राकृत रचना है । सिद्धान्तसार एक प्राकृत भाषा का ग्रन्थ है और उसमें निम्न प्रकार का उल्लेख हुआ है'-, पवयणपमाणलक्खण छंदालंकार रहियहियएण । जिणाइंदेण पउत्त्तं इणमागमभत्तिजुत्तेण ॥७॥ भट्टारक ज्ञानभूषण : सिद्धान्तसारभाष्य : भट्टारक ज्ञानभूषण अपने समय के सर्वाधिक लोकप्रिय भट्टारक थे। उत्तरी भारत में और विशेषतः राजस्थान एवं गुजरात में उनका जबरदस्त प्रभाव था । ज्ञानभूषण एवं ज्ञानकीर्ति ये दोनों ही सगे भाई एवं गुरु भाई थे और वे पूर्वी गोलालारे जाति के श्रावक थे।२ ज्ञानभूषण प्रतिभापूर्ण साधक थे। उन्होंने आत्मसाधना के अतिरिक्त ज्ञानाराधना, साहित्य साधना, सांस्कृतिक उत्थान एवं नैतिक धर्म के प्रचार में अपना सम्पूर्ण जीवन खपा दिया। सर्वप्रथम उन्होंने स्तवन एवं पूजाष्टक लिखे फिर प्राकृत ग्रन्थों की टीकाएँ लिखीं। श्री नाथूरामजी प्रेमी ने इनके तत्वज्ञानतरंगिणी, सिद्धान्तसारभाष्य, परमार्थोपदेश , नेमिनिर्वाण की पंजिकाटीका, पंचास्तिकाय, दशलक्षणोद्यापन , आदीश्वर फाग, भक्तामरोद्यपान, सरस्वती पूजा ग्रन्थों का उल्लेख किया है। सिद्धान्तसारभाष्य : - सिद्धान्तसार में ७९ गाथाएँ हैं। सिद्धान्तसार में वर्णित विषयों का अंकन प्रथम गाथा में ही कर दिया गया है। बताया है - जीवगुणस्थानसंज्ञापर्याप्तिप्राणमार्गणानवोनान्। सिद्धान्तसारमिदानी भणामि सिद्धान् नमस्कृत्य ॥ अर्थात् जीवसमास, गुणस्थान, संज्ञा, पर्याप्ति, प्राण और मार्गणाओंका इसमें वर्णन किया गया। १४ गुणस्थानों में चतुर्दश मार्गणाओं का सुन्दर विवेचन आया है। इस प्रकार मार्गणाओं में जीवसमासों की संख्या भी दिखलायी गयी हैं । ७८ वीं गाथा में लेखकका नाम अंकित है - पवयणपमाणलक्खणंछंदालंकाररहियहियएण। जिणइंदेण पउत्तं इणमागमभत्तिजुत्तेण ॥ -241 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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