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________________ ५. विड - विटौषधि - ( शूलरोग, विष्ठारोग/मलस्थानरोग की शान्ति) ६. सव्व - सर्वोषधि - (जलोदर, वायुरोग, रोमरोग, नखरोग) ७. मुह - मुखौसधि -(तिरुक, कटुक, आम्ल, पित रस का शमन) ८. दिट्टि - दृष्टिऔषधि - ( नेत्रोषधि ) (तिलोय.प. १०७८.८७) रस - भगवती आराधना में कोढी के लिए इक्षुरस (१२१७) बहुत उपयोगी बतलाय । छब्भेया रसारिद्धि आसी-दिट्टी विसा य दो तेसुं । खीर-महु-अमिय-सप्पीसविओ चत्तारि होति तुमे ॥ -ति.प. १०८८) १. आशीविष २. दृष्टिविष ३. क्षीरस्रवी ४. मधुरस्रवी ५. अमृतस्रवी और ६. सर्पि स्रवी . ( विस्तार - १०८८-१०९८ तक) चूर्ण णोत्तस्संजणघुण्णं भुसणचूण्णं च गत्तसोभयरं । " (मूलाचार ४६०) नया में नेत्राञ्जन, भूषणचूर्ण, गात्रशोभकर, गेरु, हरताल भष्म, खड़िया.मेनशिल आदि पूर्ण का वर्णन है ।- मूलाचार गा.४७४ । धवला पु. ६५ ,२७३ में यव, गोधूम, चना, सत्तु आदि के चूर्ण का उल्लेख है । दसवेयालिय में (अंचणे दंणबणे गायाभंग, विभूषणे ।) अंजन, दंतमञ्जन, शरीरशोभा का गात्रभंगचूर्ण का उल्लेख मिलता है । तैल -प्राकृत शाहित्य के आगम ग्रथों चारितग्रंथों एवं कथादि ग्रन्थों में सहस्रपाक तैल या शतपाक तैल का पर्याप्त उल्लेख मिलता है, जिस के मालिश करने से शरीर निरोग एवं सुन्दर बनता था । उपासकदशांग में ('सगपागसहस्सपागेहिं ') सतपाक एवं सहस्रपाक तैल द्वारा शरीर की शोभा बढ़ाने का उल्लेख है और इसी में एगेणं सुरहिणा गंधट्टणं आठ सुगन्धित वस्तुओं का भी उल्लेख है । तैल के प्रकार - मूलतः शतपाक, सहस्त्रपाक इन दो प्रकार के तैलों का उल्लेख प्राकृत साहित्य में मिलता है । आठ सुगन्धित वस्तुओं के तैल का कोई नाम नहीं है, फिर भी तैल का एक प्रकार यह भी है । मूलाचार में सगन्धित तैल का उल्लख है । (मूल. ८३८) भोजन का पथ्यापथ्य - भोजन शरीर के लिए अनिवार्य एवं आवश्यक माना गया है । भगवती आराधना की गाथा दृष्टव्य है - अकडुमतित्तमणंविलं च अकसायमलवणममधुरं । अविरस मदुरभिंगधं अच्छमणुण्हं अणदिसींदं ॥ -भ आ. १४८५॥ अकटुक, आतिक, अनाम्ल, अकषाय, अलवण, अमधुर, अविरस, अदुरभिंगध, स्वच्छ, न गर्म और न ठण्डा हो, वह भोजन शरीर प्रक्रिया में बाधक नहीं होता है । उत्तराध्ययन में (१६/१२) अधिक भोजन और अरस - 207 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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