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________________ शिक्षा का प्रचार - तिसट्ठिमहापुराण के सन्दर्भो से विदित होता है कि उस समय शिक्षा का प्रचार अच्छा था, विशेष रूप से बड़े-बड़े नगरों में। मान्यखेट विद्या केन्द्र था। वहाँ के शुभतुंग-भवन में रहकर पुष्पदन्त ने अपना साहित्यप्रणयन तो किया ही, साथ ही उन्होंने जिस प्रकार पूर्ववर्ती कवियों तथा उनके ग्रन्थों का उल्लेख किया, उससे विदित होता है कि उस भवन में एक विशाल ग्रन्थागार भी था, जहाँ जिज्ञासु - गण कवि एवं संगीतकार स्वरुचि के ग्रन्थों का स्वाध्याय एवं पठन-पाठन तथा लेखन एवं सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक गायन का कार्य करते रहते थे। (तिसट्टिमहा. १/५)। राजन्य-वर्ग की नई पीढ़ी को संस्कृत एवं अपभ्रंश-भाषाओं की शिक्षा प्रदान की जाती थी (तिसट्ठिमहा. ५/१८/६)। उपाध्याय राजकुमारों को काव्य, नाट्य-साहित्य, ज्योतिष, संगीत, अर्यशास्त्र एवं कला आदि का अध्ययन कराया करते थे। इसके साथ-साथ उन्हें घुडसवारी, धनुर्विद्या, राजनीति, खड्ग-संचालन और कानूननीति की शिक्षा भी प्रदान की जाती थी।जैन-साधु अध्यात्म, आचार, तथा धर्म-दर्शन की शिक्षा प्रदान किया करते थे (जस. १/२४)। व्यपार-कार्य - तिसट्ठिमहा. के अनुसार उस समय के व्यपारी बड़े समृद्ध थे। वे लंका आदि द्वीपों से व्यापार करके अच्छी मात्रा में धनार्जन कर लौटते थे । यथा - लंकाइहिं दीविहिं संचारिवि अण्णण्ण पसंडि भंड भरिवि । ८२/७/२ णायकुमारचरिउ में एक समृद्ध व्यापारी का उल्लेख आया है, जो गिरिनगर जाकर व्यापार किया करता था (१/१५/५-६) कृषि-कार्य एवं गोधन-पालन - पुष्पदन्त-काल में कृषि-कर्म उन्नत अवस्था में था। महाकवि ने देश-वर्णन एवं नगर-ग्राम वर्णनों के प्रसंग में इसका अनेक स्थलों पर सुन्दर वर्णन किया है। तिसट्ठिमहा. में महाकवि ने हरे-भरे लहलहाते, वायु के झकोरों से इठलाते हुए यव, कंगु, मूंग, इक्षु एवं धान के खेतों की चर्चा करते हुए गोधन-विचरण तथा इक्षुरस-पान कर मधुर गान करते हुए ग्वालावलों का वर्णन कर ग्राम-जीवन का मनोहारी वर्णन किया है। समकालीन लोकप्रिय भाषाएँ - पुष्पदन्त-काल में संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश ये तीनों भाषाएँ लोकप्रिय थीं। राजकुमारों को इन तीनों भाषाओं का अध्ययन कराया जाता था। यथा - सक्कउ-पायउ पुणु अवहंसउ वित्तउ उप्पइउ समसंसउ (तिसट्टिमहा. ५/१८/६) - 199. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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