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________________ 23. अभिमानमेरु पुष्पदन्त एवं उनका तिसट्ठि - महापुराणु प्राच्यकालीन परम्परागत धर्म - कथा - साहित्य को जैन - परम्परा में पुराण अथवा महापुराण कहा गया है। पुराण तो उसे कहा गया है, जिसमें किसी एक शलाका - महापुरुष के चरित का वर्णन रहे और महापुराण वह है, जिसमें सठ - शलाका के अन्तर्गत आने वाले सभी त्रैसठ प्रकार के महापुरुषों का वर्णन किया गया। इसीलिये जैनाचार्य-लेखकों ने महापुराण को तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकारो (त्रिषष्टि- महापुरुषगुणालंकार) भी कहा है। ज्ञात एवं उपलब्ध जैन- महापुराण संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश में जैन पुराण- साहित्य तो प्रचुर मात्रा में लिखा गया किन्तु महापुराण - साहित्य अल्प मात्रा में। अभी तक कुल मिलाकर ७ (सात) महापुराणों की जानकारी मिलाती है - संस्कृत में - ३, प्राकृत में - २ एवं अपभ्रंश में - २. - प्रो. डॉ. राजाराम जैन, नोएडा - इनमें से संस्कृत का प्रथम महापुराण है- अचार्य जिनसेन का, जिसका अपर - नाम है त्रिषष्ठिशलाकामहापुरुषचरित (९वीं सदी ईस्वी) । यह ग्रन्थ प्रकाशित हो चुका है। संस्कृत का द्वितीय महापुराण है। - आचार्य हेमचन्द्रकृत (१२वीं सदी ई.) त्रिषष्ठि - लक्षणपुरुषचरित। यह ग्रन्थ भी प्रकाशित हो चुका है। संस्कृत का तीसरा महापुराण अप्रकाशित है। उसके लेखक का नाम भी अज्ञात है । इसकी सूचना अमरसूरिकृत प्राकृतमहापुराण के एक पाद-टिप्पण में मिली है। उसकी पाण्डुलिपि जैसलमेर (राजस्थान) के शास्त्र - भण्डार में सुरक्षित है। इनमें से द्वितीय एवं तृतीय रचनाएँ श्वेताम्बर - परम्परा से संबंधित हैं। Jain Education International प्राकृत-भाषात्मक दो महापुराणों में से प्रथम महापुराण के लेखक है, शीलांकाचार्य (सन् ८६८ ई.) । यह ग्रन्थ चउपन्न-1‍ -महापुरिसचरियं (प्रकाशित, वारणासी - १९६१) के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी विशेषता है कि इसमें ९ प्रतिवासुदेवों की चर्चा नहीं की गई है। प्राकृत भाषात्मक दूसरे महापुराण के लेखक है, अचार्य मेरुतुंग । यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। इसकी पाण्डुलिपि पाटन (गुजरात) के शास्त्र - भण्डार में सुरक्षित है। प्राकृत की दोनों रचनाएँ श्वेताम्बर-परम्परानुकूल लिखित हैं। अपभ्रंश-भाषा में लिखित दो महापुराण उपलब्ध हैं। प्रथम है महाकवि पुष्पदन्तकृत (१०वीं सदी ई.) जो तिसट्ठिमहापुरिसायारगुणालंकारु के अपरनाम से प्रसिद्ध है और जो प्रकाशित हो चुका है। द्वितीय है महाकवि रइधू (१६वीं सदी ई.) कृत, जो तिसट्ठिमहापुराण- पुरिसायारगुणलांकारू के अपरनाम से भी प्रसिद्ध है। इसकी भारत में मात्र एक ही जीर्णशीर्ण पाण्डुलिपि उपलब्ध हैं। उसमें ५० सन्धियों एवं १३५७ कडवक है। इसका सम्पादन-कार्य चल रहा है। - 187 - - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006701
Book TitleUniversal Values of Prakrit Texts
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherBahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
Publication Year2011
Total Pages368
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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