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Prakrit Universal Values and Tradition
पाइयभासा परंपरा
तित्थं सुवीर-खरवेल-असोग-देसे जोण्हागमेस बहणाडग-कव्व भासा । जुत्ता हु पाइयपुरा जण-जण्ण जादा बोलीउ बोलि-अवभंस-सु-अज्ज-भासा ।।१।।
अम्हे पुरा समरण- म-सुणाणधारी तेसिं णिरूविद-कधा-थुई-सुत्त-गंथा । ते मुल्लजीवण-सुणेदिग-सिक्ख दीवा धम्मस्स दंसरण-सुंदसण-रम्म-कोसा ।।२।।
तं अज्झणेण मह णाण-सुवित्थ होई भूगोल-जोइस-रसायन-धादु-णाणं । अायार-रायरणइगस्स वि णाण-सत्थं
रट्ठस्स सक्कइरहस्स-क
कुंदप्पहा-गुणधरा जइ-वट्टकेरा सामी तु कतिकइयो रणइमी-सिवजा । तं हाल-हेम-हरिभद्द विमल्ल णेमि पुफ्फ सयंभु-वररुइ जिण-थूलभद्दा ।।४।।
बाहुबलीपागद विज्जपीढं भटटारगं सिरिचरुकिरतिं पयासे । अन्तररट्टिय संगोट्ठि बेलगोले णं दाहिणे अवरिदो पाइय विस्सो ।।५ ।।
काव्य - डॉ. उदयचन्द जैन
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