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________________ (498) : नंदनवन में दूर कर सके और यदि मैं विनम्रतापूर्वक कहूं, तो मुझे कहना चाहिये कि मेरी धारणा के विपरीत व्यक्तियों से भेंट होने पर मैं उनकी कुछ कमी दूर कर सकूँगा। प्रत्येक व्यक्ति की ग्रहणशक्ति या अवधारण-शक्ति भिन्न-भिन्न होती है; कहीं-कहीं तो इनमें आकाश पाताल का अन्तर होता है, पर यह एक प्रकट तथ्य है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास अवधारण-शक्ति है, जो पृथ्वी पर किसी महाव्यक्ति (ईश्वर ?) के संचय-गृह से ही भिन्न-भिन्न मात्रा में प्राप्त होती है। जगत् में आनन्दोपभोग के लिये या बुद्धिमत्ता के लिये वस्तुओं का ज्ञानमात्र ही आवश्यक नहीं है। कुछ ऐसी भी वस्तुयें हैं, जो प्लेटो (एक प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक-400 ईसापूर्व), जूलियस सीजर (रोम का एक प्रसिद्ध सेनानी और राजनीतिज्ञ-200 ईसापूर्व) और अलहेरी दाते (इटली का एक प्रसिद्ध कवि; 13-14 सदी) की अपेक्षा एक किसान का लड़का अधिक अच्छी तरह जानता है। पर क्या यह कहा जा सकता है कि यह लड़का उनसे अधिक बुद्धिमान है ? टामस ब्राउन ने अपनी 'गवांरू गल्तियां' नामक पुस्तक में लिखा है कि "सूर्य के चारों ओर पृथ्वी चक्कर लगाती है, यह धारणा इतनी लचर है कि विरोध की सीमा में ही नहीं आती। इस विषय में अब अधिक जानकारी प्राप्त है, पर इसी बात से मैं श्री ब्राउन से अधिक बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता। बुद्धिमत्ता वस्तुओं के ज्ञान पर निर्भर नहीं है। मै मानता हूं कि अब्राहम लिंकन अपने समय के सबसे अच्छे बुद्धिमान और आदर्श और उदार पुरुष थे, जिन्होंने पृथ्वी की भलाई की है, पर शिक्षा की दृष्टि से वे किसी औसत के मुकाबिले पूर्णतः अज्ञ ठहरते हैं। उपर्युक्त कथन से मेरा यह आशय नहीं कि मैं व्यक्ति को ज्ञानार्जन के प्रति उत्सुकता से हटाना चाहता हूं। प्रत्येक व्यक्ति को जगत् की इस आश्चर्यजनक गाड़ी के विषय में, जिस पर चढ़कर हम सूर्य के चारों ओर वार्षिक परिभ्रमण करते हैं, और पागल व निर्दय होकर लड़ते-झगडतें हैं, शक्तिभर जानने की चेष्टा करनी चाहिये। पर सम्पूर्ण यावच्छक्ति ज्ञान-प्राप्ति के अन्त में भी व्यक्ति को अपने ऊपर यह देखकर आश्चर्य होगा कि उसका ज्ञान अत्यन्त अल्प है। इसके विपरीत, उसे यह अनुभव होगा कि जीवन में सुख और शांति के लिये तथ्यों का संचय नहीं, अपितु उनकी स्वस्थ अनुभूति ही अचूक उपाय है। वास्तव में, सवोनरोला के इस कथन में पूर्ण सत्यता निहित है, कि__ "ईसामसीह के वचनों में पूर्णतया श्रद्धा रखनेवाली औरत का ज्ञान प्लेटो और अरिस्टाटल (अरस्तू) से कहीं अधिक परिपूर्ण है।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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