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________________ अध्याय Jain Education International — अज्ञान के उपाश्रय में अपने अज्ञान के प्रति क्षोभ व्यक्त करते हुये एक युवक ने मुझसे एक पत्र द्वारा यह जिज्ञासा व्यक्त की है कि विद्वान और बुद्धिमान बनने के लिये मुझे कौन-सी अध्ययन की दिशा एवं क्रिया अभिमत है। मैंने उसे अपनी बुद्धि के अनुसार, सम्मतिपूर्ण उत्तर भी दे दिया है। लेकिन जैसे-जैसे मैंने इस पर विचार किया, वैसे-वैसे स्वयं इस कार्य की क्षमता की योग्यता के अभाव का अनुभव किया। मेरी इस अन्तर अनुभूति पर, मेरे अर्जित ज्ञान - विज्ञान के प्रति अभिव्यक्त आदर भावनायें तनिक भी प्रभाव न डाल सकीं। इसके विपरीत, मुझे अपनी स्थिति देखकर यह ध्यान में आया कि मेरी यह अनुभूति ठीक उसी प्रकार की है जैसी उस व्यक्ति की होती है जिसने यात्रा तो प्रथम श्रेणी में की हो, पर टिकिट तृतीय श्रेणी की ले रखा हो। मैंने अपनी विज्ञान - नेतृत्व सम्बन्धी प्रसिद्धि पर भी विचार किया, और तब मुझे अपनी ज्ञान निधि की अपूर्णता को देखकर काफी ठेस लगी। जब मैंने यह देखा कि मेरा ज्ञान-भण्डार उन अज्ञात अनन्त वस्तुओं में निक्षिप्त राशि की अपेक्षा कितना तुच्छ है, तो मैं आत्मश्रद्धा - शून्य हो गया। मैंने सोचा कि मैं एक पौंड के बदले दो पैसे भी नहीं दे सकता, मेरे पास सिर्फ दिग्दिगन्त व्याप्त अज्ञान ही है, और कुछ नहीं, फिर क्यों व्यक्ति मुझसे कर्ज मांगने आये ? For Private & Personal Use Only 17 मैं पहले अपने से ही प्रारम्भ करूं । मेरा यह शरीर (शरीर - वृक्ष) बुद्धि कौशल निर्मित दो स्तंभों पर स्थित है जिसकी ऐसी दो शाखायें क्रियाशील रहती हैं, जिनमें प्रत्येक के अन्त में पांच-पांच कोमल उपशाखायें हैं। इसके सिरे पर एक महाकाय गोलाकार घुण्डी है, जिसमें आश्चर्यजनक छोटे-छोटे चमकते हुये मणियों के समान छिद्र हैं, चटाई - सी ढंकी हुई है, और जो विभिन्न ध्वनि उच्चारण करती है, बोलती है, गाती है, हंसती है, चिल्लाती है। पर मैं इसके विषय में क्या जानता हूं ? मैं तो मात्र रहस्यों का पिटारा हूं, जो कोट और पायजामा की जेबों में भरे हुये हैं। मैं कभी भी बिना शब्दकोष देखे यह न बता सका कि शरीर में उपजिह्वा कहां है, और इसका क्या कार्य है ? मुझे इसका अर्थ कई बार बताया गया, पर मैं हमेशा भूल जाता हूं। www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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