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________________ (484) : नंदनवन से उत्पन्न विशिष्ट घटकों की समुचित मात्रा से होता है । यदि ये घटक समुचित मात्रा में न हों, तो हमारी मनोवृत्ति और प्रकृति असामान्य होने लगती है। फलतः हमें अच्छी मनोवृत्ति, अच्छी प्रवृत्ति एवं शांति आदि की प्रकृति के अनुरूप समुचित मात्रा में पौष्टिक आहार लेना चाहिये, सात्विक आहार, शाकाहारी आहार लेना चाहिये। वर्तमान में अनेक औषधियां भी इस दिशा में सामने आई हैं। कर्मवादी जैन धर्म के अनुसार, हमारी मनोवृत्ति और व्यवहार को प्रभावित करने वाले मोहनीय कर्म के ही नहीं अपितु आठों कर्मों के परमाणु विश्व के कोने-कोने में व्याप्त हैं। हम क्रोध के परमाणु ग्रहण करें, या करुणा और शान्ति के, यह हमारे आन्तरिक पर्यावरण पर निर्भर करता है । धर्माचार्य तो करुणा और अहिंसा की मनोवृत्ति के उत्पादक परमाणुओं को ग्रहण करने का उपदेश देते हैं। पर क्या हमारा आन्तरिक तंत्र इसके लिये सबल है? हमारे आहार - विचार को प्रभावित करने वाली प्रवृत्तियों (उपवास, ऊनोदरी, प्रोषध, अभक्ष्य त्याग, व्यसन त्याग, तथा ध्यानादि) से हमारी आन्तरिक ऊर्जा की वृद्धि होती है और आन्तरिक पर्यावरण भी भौतिक और रासायनिक दृष्टि से शुद्ध होता है एवं वह शुभ प्रवृत्तियों के परमाणुओं को ग्रहण करने में सदैव सक्षम रहता है। फलतः सात्विक आहार एवं उपरोक्त विधियों के अभ्यास से हमारा आन्तरिक पर्यावरण - मनोभावात्मक वृत्तियां शुद्ध होती हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति के युग में उन प्रवृत्तियों का अभ्यास कुछ कठिन अवश्य प्रतीत होता है, पर इसके बिना कोई चारा नहीं है। अशुद्ध आन्तरिक प्रवृत्तियों को संयमित करना ही होगा। इसी से हम 'जिओ और जीने दो' तथा 'परस्परोपग्रहो जीवानां' के सिद्धान्त को मूर्तरूप दे सकेंगे । इसी से हम जीवों के प्रति समभाव, आदर एवं करुणा की भावना प्रगाढ़ बना सकेंगे। वस्तुतः सन्तुलित आन्तरिक पर्यावरण में ही मानव का कल्याण निहित है और यही भौतिक एवं रासायनिक पर्यावरण को संयमित करने के लिये मूल आधार है। आहार संयम 'संयम' शब्द का अर्थ है, अशुद्ध वृत्तियों या प्रवृत्तियों का सम्यक् रूप से नियंत्रण या निरोध और फलतः, शुभ वृत्तियों की ओर उन्मुखता एवं प्रवृत्ति। डा. भाट ने 'संयम' शब्द से निरोध, अशुभ - निवृत्ति, चिन्तनशीलता, एकाग्रता और ध्यान तक के अर्थ लिये हैं और इसके इकतीस लाभ गिनाये हैं। ये पातंजल सूत्र में भी मिलते हैं। वस्तुतः आहार - संयम, इन सबमें प्रमुख है क्योंकि संयमित और सात्विक आहार के संयमन से आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है जिससे हमें उपरोक्त लाभ होते हैं । वस्तुतः, यदि निम्न चक्रआहार संयम → आंतरिक पर्यावरण संयम भौतिक पर्यावरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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