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________________ जैन शास्त्रों में भक्ष्याभक्ष्य विचार : (463) (4) - मांस जीव के शरीर से प्राप्त होता (4) है, पर प्रत्येक जीव (वनस्पति) का शरीर मांसमय नहीं होता। यह तामसिक प्रवृत्ति को जन्म देता (5) मांसाहार और तामसिक प्रवृत्ति का कोई सरल सम्बन्ध नहीं है। पर योगी ऐसा नहीं मानते। मांस भक्षण हिंसा-पूर्वक होता है। 3. प्रभाव दोष मांस भक्षण में द्रव्यहिंसा और (1) भावहिंसा - दोनों होती है। मांस भक्षण से इन्द्रियों में मादकता (2) आती है शाकाहार की तुलना में यह दुष्याच्य है, अत: गरिष्टता का अनुभव होता मांस भक्षण न करने का महाफल (3) होता है। यह न करना चाहिये, न कराना चाहिये और न ही इसकी अनुमोदना करनी चाहिये। (4) इससे शरीर तंत्र में कोलस्टेरोल एवं संतृप्त वसीय अम्लों की मात्रा अधिक पहुंचती है। इससे रक्तचाप, हृदयरोग, केंसर, अस्थिरोग, मधुमेह आदि रोगों की बहुत सम्भावना होती है। इससे विषाक्तता की सम्भावना रहती है। (6) इसमें रेशे कम होने के कारण मधुमेह नियंत्रण क्षमता नहीं होती। (7) इसका मूल्य भी अधिक होता है। मांस की अभक्ष्यता की चर्चा में इस शब्द को व्यापक अर्थ में लेना चाहिये। फलतः इसके अन्तर्गत मछली, अंडे आदि सभी उच्चतर कोटि के जीवों या उनसे निष्पन्न पदार्थों को मानना चाहिये। इस प्रकार व्यापक रूप से सभी मांसीय पदार्थ अभक्ष्यता की कोटि में समाहित होते हैं। (8-12) पंच उदुम्बर फल पंच उदुम्बर फलों (बड़, पीपल, पाकर, ऊमर, कठूमर) की अभक्ष्यता का कारण स्पष्ट है। ये क्षौरी वृक्षों के फल हैं। इन फलों को तोड़ने पर दुग्धसम द्रव सवित होता है। इन फलों में अनेक प्रकार के जीव आंखों से ही देखे जा सकते हैं। इनमें इनके अतिरिक्त अन्य प्रकार के सूक्ष्म जीव भी सम्भावित हैं। इन्हें पूर्णतः पृथक् कर साफ भी नहीं किया जा सकता। फिर भी कटु, रुक्ष, कषाय एवं शीतवीर्य होने के कारण द्रव्य-गुण विज्ञानी इनका अनेक औषधियों में प्रयोग करते हैं। सामान्य जैन गृहस्थों में इनका इस रूप में भी उपयोग नहीं किया जाता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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