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________________ जैन शास्त्रों में भक्ष्याभक्ष्य विचार : (459) 2. पंरिरक्षित खाद्य : (5) अचार-मुरब्बा ___ वर्तमान युग में अचार-मुरब्बा या संधानित खाद्यों को परिरक्षित खाद्यों की कोटि का प्रतिनिधि मानना चाहिए। सम्भवतः सर्वप्रथम बाईस अभक्ष्यों की धारणा के विकास के समय ही इन खाद्यों को अभक्ष्यता की कोटि में विशिष्ट नाम देकर रखा गया। यही कारण है कि प्राचीन ग्रन्थों में इनका नाम नहीं मिलता। धर्मसंग्रह में संधानों की अभक्ष्यता का कोई कारण नहीं बताया गया है, पर जैन-क्रिया-कोश में कहा गया है कि जब आम, नींबू आदि में राई, कलौंजी आदि मिला कर तैल मिलाया जाता है, तब उनमें अनके त्रसजीव उत्पन्न होते हैं। अतः इनके खाने से मांस-दोष लगता हैं। सम्भवतः आज का सामान्य शिक्षित व्यक्ति इस कथन को नहीं मान सकेगा। यही कारण है कि अचार-मुरब्बा आदि परिरक्षित पदार्थों का सेवन स्वाद, स्वास्थ्य एवं रसमयता के कारण दिनोंदिन बढ़ रहा है। वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति इस तथ्य से परिचित है कि सामान्य हरे फल या भोज्य पदार्थ बिशिष्ट ऋतुओं में पैदा होते हैं और वे कुछ समय बाद आन्तरिक एवं बाह्य जीवाणुओं के प्रभाव से विकृत होने लगते हैं। उनकी बहुत दिनों तक उपयोगिता बनाये रखने के लिये यह आवश्यक है कि उनमें विकारोत्पादी घटकों की सक्रियता को समाप्त कर दिया जाए। नमक, तेल, शक्कर, सिरका आदि पदार्थ यह काम सरलता से करते हैं। आजकल सोडियम बेन्जोएट के समान अनेक रासायनिक पदार्थ भी इस काम आते हैं। अचार प्रायः खट्टे माने जाते हैं और मुरब्बे मीठे। पर आजकल मीठे अचार भी बनने लगे हैं। इसमें परिरक्षकों के अतिरिक्त अन्य घटकों को मिलाने से उनकी उपयोगिता औषधीय दृष्टि से भी बढ़ जाती है। यही नहीं, उनकी विकृति रुक जाने से परिरक्षित पदार्थों को वर्ष की सभी ऋतुओं में काम में लिया जा सकता है। तकनीकी दृष्टि से अचार-मुरब्बे बनाने की इस क्रिया को ही 'परिरक्षण' कहते हैं। इस विधि के विकास से अब आम-नींबू की तो बात ही क्या, गाजर, मूली, अदरक, मिर्च, गोभी, करेला आदि अनेक शाक-भाजियों के अचार-मुरब्बे बनाये जाने लगे हैं। यद्यपि ये खाद्य हमारे आहार के अल्पमात्रिक घटक हैं और खाद्य कोटि में आतें हैं, फिर भी इनके उपयोग से भोजन का पाचन और उद्दीपन सरल हो जाता है। इनमें विद्यमान घटक स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। आंवले के मुरब्बे से कौन परिचित नहीं है ? यह तो औषधिक भी है। आंवले और आयुर्वेद का अविनाभाव सम्बन्ध है। आज के युग में अचार-मुरब्बों की कोटि के पदार्थों की विविधता बढी है। इनमें टमाटर आदि के सांद्रित रसों से कैचप, सॉस, स्क्वैश आदि समाहित हैं। ये परिरक्षित कर वर्ष भर मिलते रहते हैं। अनेक फलों के रसों व खंडों से बने हुए जैम और जैली भी परिरक्षित पदार्थ हैं। वस्तुतः आजकल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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