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(412) : नंदनवन
5. आयु कर्म
दीर्घायुष्य, मानव जनसंख्या में ज्यामितीय वृद्धि, अधस्तन कोटि के जीवों की मानव गति
6. नाम कर्म दुर्लभ मनुष्यगति की जनसंख्या में वृद्धि, शरीर के विविध अवयवों का
प्रतिरोपण, हृदय-धमनियों का उपमार्गण, मनोदैहिक एवं देह-मानसिक विज्ञान का विकास, मनुष्यों की मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं में वृद्धि, सामान्य मनोविज्ञान एवं परामनोविज्ञान
का विकास 7. गोत्र कर्म अनुसूचित/परिगणित जातियों का राजनीतिक उत्परिवर्तन, सेवा
तथा शिक्षा आदि क्षेत्र में आरक्षण, व्यावसायिक अवसरों की वृद्धि के
साथ जीवन के उच्चतर स्तर के विविध अवसर। 8. अन्तराय समाज एवं व्यक्ति के भौतिक एवं मानसिक विकास में आने वाली कर्म
बाधाओं का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निराकरण, राजनीति या धार्मिक
नेताओं की विविध प्रवृत्तियां। 13. विभिन्न कर्मों का विज्ञान की अन्य शाखाओं से सम्बन्ध
आठों कर्मों के उद्देश्य और प्रभावों का अध्ययन करने पर हमें प्रतीत होता है कि कर्मवाद विज्ञान की अनेक शाखाओं से सम्बन्धित है : 1-2. ज्ञानावरण और दर्शनावरण मनोविज्ञान, तंत्रिका विज्ञान 3. वेदनीय कर्म
मनोविज्ञान मोहनीय कर्म
मनोविज्ञान अन्तराय कर्म
मनोविज्ञान आयु कर्म
शरीर-क्रिया एवं स्वास्थ्य विज्ञान नाम कर्म
शरीर-रचना, शरीर-क्रिया और मनोविज्ञान 8. गोत्रकर्म
समाजशास्त्र, मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र इस सम्बन्ध को तत्त्वार्थसूत्र के छठे अध्याय में वर्णित विभिन्न कर्मों के आस्रव-द्वारों के माध्यम से अच्छी तरह समझा जा सकता है। इनसे यह भी पता चलता है कि कर्म भौतिक और मनोवैज्ञानिक-दोनों ही रूपों में पाये जाते हैं। इन्हीं आसव-द्वारों के अध्ययन से बीवर-फ्रेशनर समीकरण को कर्मवाद पर लागू किया जा सकता है। 14. कर्मवाद पर विज्ञान के अन्वेषणों का प्रभाव
विज्ञान के अनेक प्रकार के अन्वेषपों के माध्यम से कर्मवाद को प्रचण्ड भौतिक आधार मिला है। इस कारण अनेक भौतिक एवं व्यवहार सम्बन्धी घटनाओं की ग्रंथि–स्राव, मस्तिष्क के सक्रिय केन्द्र, आनुवांशिक अपूर्णतायें एवं विकास, आहार परिवर्तन, औषध एवं ध्यान आदि के माध्यम से व्याख्या की जा सकी है, जैसा सारणी 2 से प्रकट है। पहले इन घटनाओं की व्याख्या कर्मवादी मनोविज्ञान से की जाती थी। विज्ञान के विकास के पूर्व ये घटनायें वैज्ञानिक क्षेत्र से बाहर की मानी जाती थीं। अब नई खोजों से नई दृष्टि मिली हैं और कर्मवाद के सिद्धान्त के इहलौकिक प्रभावों में काफी
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