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11. कर्म की प्रभावकता
व्यक्ति - प्रधान कर्मवाद विभिन्न प्रवृत्तियों से अर्जित कर्मों एवं उनके प्रभाव को निरूपित करता है जिससे व्यक्ति का व्यक्तित्व, चरित्र, आदतें, विकास, व्यवहार, मनोभाव तथा भावी जीवन निर्धारित होता है। इसका कारण हमारे भारी (प्रतिकूल) और हल्के ( अनुकूल ) या पुण्य और पाप कर्म तथा प्रारब्ध कर्म हैं। डॉ. अनिल कुमार जैन ने कर्मों के उत्तम प्रभाव को निरूपित करने वाला एक गणितीय समीकरण बनाया है:
उत्तम प्रभाव : (भूत+वर्तमान) अनुकूल कर्म > प्रतिकूल कर्म (भू. + व.) जघन्य प्रभाव : (भू. + व.) अनुकूल कर्म < (भू. + व.) प्रतिकूल कर्म
जिसके अनुसार, यदि अच्छे कर्म, प्रतिकूल कर्मों की तुलना में अधिक हैं, तो उत्तम प्रभाव होगा। इसके विपरीत स्थिति में जघन्य प्रभाव होगा ।
क्रं.
1.
कर्मवाद का वैज्ञानिक पक्ष
12. कर्मों के क्षयोपशम या धार्मिकता में वृद्धि
वर्तमान में समाचार पत्रों के लेखों, विद्वानों और धर्माचार्यों के भाषणों में विज्ञान के लाभों का संकेत करते हुए उससे हो रही हानियों का विशेष वर्णन होता है जिससे ऐसा लगता है कि हमें विज्ञान - पूर्व के युग में चले जाना चाहिये । पर यह प्रलय आने तक तो सम्भव नहीं दिखता। इसके विपर्यास में, विज्ञान से, हानि की तुलना में लाभ अनेक हुए हैं। कर्मवाद का सिद्धान्त इससे अधिक प्रभावित हुआ है । सारणी 1 से स्पष्ट है कि इस सदी में आठों की कर्मों के क्षयोपशम में वृद्धि हुई है और, फलतः, हमारी धार्मिकता में वृद्धि हुई है । विज्ञान के अन्वेषणों से हम अच्छे शाकाहारी और अहिंसक बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा लगने लगा है जैसे हमारे पूर्वज हमारी तुलना में उतने धार्मिक नहीं थे (कम उम्र, चमडे, सिल्क और बरक आदि का उपयोग आदि) । सारणी 1 : कर्मों के क्षयोपशम या धार्मिकता में वृद्धि : समग्र धार्मिकता में वृद्धि क्षयोपशम के प्रभाव
कर्म ज्ञानावरणीय
कर्म
2.
3.
: (411)
4.
ज्ञान के क्षितिजों का विस्तारण, (कृषि, जीव-विज्ञान, चिकित्सा, विश्व-विज्ञान, कोशिकाओं तथा प्राकृतिक उत्पादों का संश्लेषण, परा - इंद्रियबोध, मन का अध्ययन, विचार संप्रेषण योग एवं ध्यान के प्रभावों की व्याख्या, अवधिज्ञान, वायुयान एवं विस्फोटक आदि ) सूक्ष्म एवं इलेक्ट्रान सूक्ष्मवीक्षण यंत्र द्वारा इंद्रियों एवं आंतरिक संरचनाओं के क्षेत्रों का विस्तारण, दूरवीक्षण यंत्र, सूक्ष्म-मापन यंत्र वेदनीय कर्म भोग भूमि से समान सुविधा - भोगों में वृद्धि, श्रम - विहीन जीवन की
दर्शनावरणीय
कर्म
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संभावना, सामाजिक प्रवृत्तियों में वृद्धि, दीर्घायुष्य, प्राकृतिक या आकस्मिक विपदाओं के समय अन्तर्राष्ट्रीय करुणा एवं सहायता के कार्य, चिकित्सा क्षेत्र के विकास के कारण नीरोगता में वृद्धि
मोहनीय कर्म धर्म की समाज सापेक्ष परिभाषा, विभक्त परिवार एवं परिवार - नियंत्रण | धार्मिक विधि-विधानों में वृद्धि, संतों की संख्या में वृद्धि, मनोविकारों एवं दुष्प्रवृत्तियों पर विजय के प्रयोग
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