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________________ (386) : नंदनवन अदन्त धावन केश लुंचन भूमिशयन एक-भक्त भोजन एक-स्थित भोजन 29-36 आचारवत्व आदि 8 (आशाधर) यह सभी लोग मानते हैं कि साधु की ये दोनों ही मूलगुण, उत्तरगुणप्रवृत्तियां निवृत्तिमुखी होती हैं, अतः इनमें श्रावक की तुलना में हिंसा की मात्रा अल्प होगी। फलतः साधुओं में व्यक्तिगत रूप में अहिंसकता अधिक होती है। हम संसारी साधु (दि./श्वे.) की अहिंसात्मकता पर किंचित् विशिष्ट चर्चा करेंगे। साधु की छह प्रमुख भौतिक आवश्यकतायें होती हैं1. आहार 2. खाद्य-पदार्थ तैयार करना तथा खाद्य पदार्थ उत्पन्न करना (कृषि) तथा खाद्यों का अंतर्ग्रहण करना 3. पान वस्त्र 5. निवास एवं आजीविका 6. शयन (1) आहार : साधु भोज्य पदार्थ न तो उत्पन्न करते हैं और न ही तैयार करते हैं। वे केवल श्रावकों के द्वारा बनाये गये आहार को अपने नियमों के अनुरूप ग्रहण करते हैं। यही नहीं, वे केवल एक बार और खड़े होकर ही आहार लेते हैं। हां, आर्यिकायें बैठकर आहार लेती हैं। इसके विपर्यास में श्वेताम्बर साधु विभिन्न श्रावकों के घरों से आवश्यक आहार एकत्र कर उपाश्रय मे ही संघरूप में आहार लेते हैं। दोनों ही कोटि के साधुओं को आहार हेतु श्रावकों के घरों की और विहार करना पड़ता है। दिगम्बर साधुओं का जहां अभिग्रह पूरा होता है, वहां उनका आमंत्रण, पूजार्चन एवं मन-वचन-काय शुद्धि के आश्वासन के साथ करपात्री आहार होता है। उसके बाद कुछ उपदेश होता है। श्रावक इसे पुण्य कार्य मानते हैं और इस अवसर पर विभिन्न कोटि के दान का उद्घोष करते हैं। इस प्रकार, निर्दोष आहार में अहिंसकता का प्राधान्य होता है। पान तो प्रायः आहार के अन्तर्गत ही आ जाता है। प्रासुक या उष्ण जल पेय लेने के कारण इस क्रिया में अहिंसकता तो है ही। . इस पेय जल के सम्बन्ध में भी किंचित् चर्चा चलती है। प्रायः परम्परावादी साधुजन कूपजल को, ग्राम्य जीवन को प्रतिष्ठित बनाये रखने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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