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________________ (360) : नंदनवन मंत्रों की प्रभावकता की व्याख्या मन्त्र विशिष्ट ध्वनियों एवं वर्गों के समूह हैं। इनके उच्चारण से ध्वनि शक्ति उत्पन्न होती है। बारम्बार उच्चारण से इस शक्ति में तीव्रता आती है। यह तीव्रता ही अनेक प्रभाव उत्पन्न करती है। इसलिए मन्त्रों को ध्वनि-शक्ति की लीलास्थली ही कहना चाहिए। यह ध्वनि शरीर तंत्र के अनेक अवयवों, स्वर तन्त्र एवं मन के कार्यकारी होने पर कंठ, तालु आदि में होने वाले विशिष्ट कम्पनों के माध्यम से उत्पन्न होकर अभिव्यक्त होती है। अतएव ध्वनि को कम्पन ऊर्जा भी कहते हैं। जैन शास्त्रों के अनुसार, ध्वनि ऊर्जामय सूक्ष्म पौद्गलिक कण हैं जो अपने उच्चारण के समय तीव्रगामी मन और प्राण से संयोग कर उनकी ही गति प्राप्त कर और भी शक्ति-सम्पन्न हो जातें हैं एवं शरीर-विद्युत उत्पन्न करती है। यह धनात्मक होती है और तंत्र में विद्यमान ऋणात्मक तत्त्वों को नष्ट कर प्रशस्तता प्रदान करती है : मन्त्र ध्वनि→ध्वनि ऊर्जा→(प्राण, मन)→ शरीर विद्युत→नकारात्मकता नाश-→ प्रशस्तता इनकी उच्चारण शक्ति से आकाश में भी, वीची-तरंग-न्याय से, कम्पन उत्पन्न होते हैं जहां इनका विस्तार एवं सूक्ष्मीकरण होता है। इन ऊर्जीकृत कम्पनों का पुंज अपने उद्भव केन्द्र पर लौटने तक पर्याप्त शक्तिशाली हो जाता है और यही शक्ति मन्त्र-साधक की शक्ति कहलाती है। हमारे शरीर तन्त्र में इस शक्ति के अवशोषण, संग्रहण एवं संचारण की क्षमता होती है। यह शरीर तन्त्र की विद्युत ऊर्जा को प्रचालित करती है। यह शक्ति मनुष्य में भूकम्प-सा ला देती है। इस शक्ति के अनेक रूप सम्भव हैं। योगीजन अपनी दृष्टि, मन्त्रोच्चारण, स्पर्श तथा विचारों के माध्यम से इस शक्ति को दूसरों के हिताहित-सम्पादन में संचारित करते हैं। ऊर्जा के कम्पनों के अनेक रूप होते हैं - (1) विद्युत (2) प्रकाश और रंग (3) प्राण (4) नाड़ी एवं (5) ध्वनि आदि। इनका सामान्य गुण कम्पन होता है। कुछ कम्पन स्वैच्छिक होते हैं और कुछ उत्पन्न किये जाते हैं (वचन, यंत्रवादन आदि)। कुछ सहज ही होते रहते हैं। इन कंपनों के विषय में भारतीय विद्याओं के 'नादयोग' तन्त्र में 'आहत और अनाहत' के रूप में विवरण मिलता है। इसके अनुसार 10 प्रकार (मेघ, घंटा, भ्रमरी, तंत्री आदि) की ध्वनियां होती हैं। ये ध्वनिकम्पन अपनी विशिष्ट तरंग-दैर्घ्य एवं आवृतियों से पहचाने जाते हैं। ये कम्पन हमारे कान के माध्यम से मस्तिष्क तन्त्र में जाते हैं, वहां से सारे शरीर में फैलकर सारे वातावरण में विसरित होते रहते हैं। ये कम्पन हमारी मानसिक एवं विद्युत ऊर्जा को भी प्रभावित करते हैं; मन्त्र के माध्यम से उसे संवर्धित एवं एकदिशी बनाते रहते हैं। इन कम्पनों की ऊर्जा हमारी प्रसुप्त या कर्म-आवृत्त ऊर्जा को उत्तेजित करती है और उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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