SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन्त्र की साधकता : एक विश्लेषण : (359) है। मुख्यतः पुनरावृत्ति छोड़कर 24 अक्षरों वाले इस मन्त्र में 29 वर्ण हैं जिनके आधार पर इसकी साधकता विश्लेषित की गई है। यह मन्त्र निम्न है: ओम भूर्भुवः स्वः तत्सवितर्वरेण्यं भर्गो। देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।। मैं उस परमात्मा (शिव) को अन्तरंग में धारण करता हूँ जो भूलोक, भुवनलोक एवं स्वर्गलोक में व्याप्त है, जो सूर्य के समान तेजस्वी एवं श्रेष्ठ है और जो देवता स्वरूप है। वह मेरी बुद्धि को सन्मार्ग में लगाये। गायत्री परिवार ने युग निर्माण योजना के माध्यम से इस मन्त्र को अत्यन्त लोकप्रियता प्रदान की है। इसको जपनेवालों की संख्या 3 करोड़ तक बताई जाती है। इस परिवार का मुख्य कार्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार में है, जहां मन्त्र-जप के प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। नई पीढ़ी के लिए यह बहुत बड़ा आकर्षण है। एक जैन साधु ने णमोकार मन्त्र से सम्बन्धित एक आन्दोलन एवं रतलाम के एक सज्जन ने उसके प्रचार का काम चालू किया था, पर उसकी सफलता के आंकड़े प्रकाशित नहीं हुए हैं। मन्त्र जप की प्रक्रिया को वैज्ञानिकतः प्रभावी बनाने के लिए इन्होंने किसी प्रयोगशाला की स्थापना की हो यह नहीं ज्ञात नहीं है। यह गायत्रीमन्त्र दिव्यशक्ति के अस्तित्व पर आधारित है जो मनोवैज्ञानिकतः सामान्यजन को प्रभावित करता है। इसके विपर्यास में, णमोकार मन्त्र अधिक वैज्ञानिक होने पर भी जैनों के क्षेत्र से आगे नहीं बढ़ पाया है। त्रि-शरण मन्त्र जैनों और हिन्दुओं के समान बौद्ध धर्म के अनुयायियों का भी एक मन्त्र है जिसे त्रिशरण मन्त्र कहते हैं। यह निम्न है : बुद्धं शरणं गच्छामि : मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ। धम्मं शरणं गच्छामि : मैं 'बुद्ध के उपदेशित' धर्म की शरण लेता हूँ। संघं शरणं गच्छामि : मैं बुद्ध संघ की शरण लेता हूँ । यह भी व्यक्ति-विशेषित भक्तिवादी मन्त्र है। बौद्धों की विशिष्ट विपश्यना ध्यान पद्धति भी है जिसमें इस मन्त्र का पारायण होता है। बुद्ध को सामान्यतः यथार्थवादी एवं व्यवहारवादी माना जाता है और उन्होंने भी पुरुषार्थ को महत्त्व दिया है। फिर भी, यह व्यक्ति-आधारित है और मनोवैज्ञानिकतः प्रभावी है। यहां बुद्ध को दिव्य शक्ति सम्पन्न मान लिया गया है। इसीलिए बौद्धधर्म भी संसार के अनेक भागों में फैला है और अनुयायियों की दृष्टि से यह विश्व में तीसरा धर्म माना जाता है जबकि हिन्दू धर्म अब चौथे स्थान पर चला गया है। इस मन्त्र में 24 वर्ण हैं जिनके आधार पर इसकी साधकता विश्लेषित की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy