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________________ (350) : नंदनवन अधिक हिंसा की सम्भावना के कारण ही पंचेन्द्रियों की हिंसा को उच्चतर नैतिक और धार्मिक अपराध माना गया है। पर यहां यह प्रश्न भी उठता है कि एक इन्द्रिय कोशिका के समूह की पंचेन्द्रियता कैसे स्थापित की जाय जिससे उसकी चैतन्य कोटि निर्धारित की जा सके। इस विषय में विचारणा चल रही है। पुण्य के परिकलन में चैतन्य की कोटि तो पंचेन्द्रियों (पशु, मनुष्य, देव, नारक) के अनुरूप ही होगी क्योंकि विकलेन्द्रियों में शास्त्रानुसार मन नहीं पाया जाता। फलतः उनके प्रकरण में यह परिकलन यथार्थता से नहीं हो पायेगा। अतएव हमें और भी सूक्ष्मतम विश्लेषण एवं विचारणा की आवश्यकता पड़ेगी। फलतः हमारा पुण्य परिकलन पंचेन्द्रियों तक ही सीमित होगा। इस समय चैतन्य कोटि का निर्धारण चल रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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