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________________ दिगम्बर आगम-तुल्य ग्रन्थों की भाषा : सम्पादन और संशोधन की विवेचना: (317) यह पाया गया है कि साहित्यिक भाषा के तीन चरण उसके क्रमिक विकास के निरूपक हैं। यह स्पष्ट है कि इनमें व्याकरण निबद्धता उत्तरोत्तर वर्धमान होगी अर्थात् प्रथम चरण प्रायः व्याकरणातीत ही होगा । सभी भाषा - विज्ञानी यह मानते हैं कि आगमों (या प्राचीन आगम तुल्य ग्रंथों) की भाषा साहित्यिक प्राकृत के विकास के प्रथम चरण ( 600 BC -200 AD) को निरूपित करती है वस्तुतः भाषिक - विकास के इतिहास की दृष्टि से प्राकृत भाषा प्राचीन एवं मध्यकालीन आर्यभाषा परिवार की सदस्य है। पौराणिक दृष्टि से इस युग में इसका उद्भव कोशल- मगध देशीय भऋषभ के समय से और ऐतिहासिक दृष्टि से मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की संस्कृति से भी पूर्ववर्ती काल से माना जा सकता है । यह पूर्व वैदिक भाषा है और भ. पार्श्वनाथ (875-775 B.C.) से पूर्ववर्ती तो मानी ही जा सकती है। इसे भ.नेमनाथ के समकालीन मानना ऐतिहासिक दृष्टि से किंचित् विचारणीय होगा क्योंकि शास्त्रों में भ. पार्श्वनाथ और भ. नेमनाथ का अंतरकाल प्रायः चौरासी हजार वर्ष बताया गया है और अभी इतिहासज्ञ 84800 ई.पू. के विषय में कोई तथ्य नहीं पा सके हैं । महाभारत युद्ध को इतिहासकारों ने अभी 1400-2000 ई. पू. तक अनुमानित किया है । ( इस सम्बन्ध में अन्य मत भी हैं)। इस दृष्टि से भ.नेमनाथ के सम्बन्धी श्रीकृष्ण और महाभारत के कृष्ण की भी समकालिकता नहीं बैठती । महाभारत के कृष्ण का शूरसेन तो मान्य हो सकता है, पर जैनों के नेमनाथ के युग के शूरसेन की विश्वसनीयता विवादित लगती है। फिर, इतिहास के अभाव में शूरसेन क्षेत्र मगध का अंग था या मगध शूरसेन का, यह बता पाना भी कठिन है। साथ ही, क्या शूरसेन की बोली के समय मगध में कोई अपनी बोली या भाषा ही नहीं थी? फलतः मागधी या अर्धमागधी शूरसेन क्षेत्रीय भाषा से जन्मी, यह तर्कणा सुसंगत नहीं लगती । इसलिए विभिन्न क्षेत्रीय प्राकृतों को समानान्तरतः विकासशील एवं बहिनों के समान मानना तो अनापत्तिजनक है, पर उन्हें माँ-बेटी के समान मानना किंचित् अतिचार लगता है। हॉ, यह मान्यता तो स्वाभाविक है कि राजनीतिक परिवर्तनों और बौद्धधर्म के उत्थान से जैनों की अर्धमागधी प्राकृत को शौरसेनी ने उत्तरकाल में प्रभावित किया हो जब मथुरा जैन केन्द्र बना हो । फिर भी यह मान्यता क्यों नहीं स्थिर की जा सकती कि उसे महाराष्ट्री प्राकृत ने भी प्रभावित किया हो ? मथुरा में ही तो लगभग 360 ई. में स्कंदिलाचार्य की वाचना हुई थी जिसमें श्वेताम्बरमान्य आगम प्रतिष्ठित किये गये थे। अस्तु सभी परिस्थितियों पर विचार करने पर महावीरकालीन प्राकृत का रूप अर्धमागधी था क्योंकि इसमें मगध के अतिरिक्त अन्य भाषागत शब्दों का भी समाहरण था । यही मूल आगमों की भाषा मानी जाती है। इस भाषा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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