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________________ आगमिक मान्यताओं में युगानुकूलन : (313) र. पण्डित फूलचन्द्र शास्त्री जैसे विद्वानों ने हरिजनों को मनुष्य मानकर उनके मन्दिर प्रवेश का समर्थन किया । उस समय उनका विरोध भी हुआ था, पर यह प्रश्न अब गौण - सा बन गया है। ल. प्रत्येक धर्म - तन्त्र में प्रायः 33 प्रतिशत भौतिक जगत् का वर्णन रहता है । इस वर्णन की शब्दावली विशिष्ट होती है। इसके कारण ही, देश - विदेशों में इसका अध्ययन नहीं हो सका । इस सदी के अनेक विद्वानों ने शास्त्रीय शब्दावली में प्रस्तुत विचारों की आधुनिक मान्यताओं से अंशतः या पूर्णतः समकक्षता स्थापित कर जैन विवरणों की तथा उसके अनेक आचार-विचारों की वैज्ञानिकता प्रतिष्ठित कर उसके संवर्धन में योगदान दिया है। इससे पश्चिमी जगत् जैन धारणाओं के मंथन की ओर आकृष्ट हुआ है । इस तरह भाव ( समय - आधारित पर्यायें) की दृष्टि से भी भौतिक एवं आध्यात्मिक मान्यताओं में परिवर्तन आया है । इन परिवर्तनों के विषय में सभी विद्वान अवगत हैं । आज भी यह परम्परा अविरत चल रही है। इसके बावजूद भी, जो विवेकीजन विज्ञान को उसकी निरन्तर परिवर्तनशीलता के कारण धर्म की तुलना में सम्मान नहीं देते उन्हें धर्म और विज्ञान की उपयोगिताओं की पुनः निष्पक्ष समीक्षा करनी चाहिये । आगमिक या आगम-कल्पिक मान्यताओं के इन परिवर्तनों तथा समयानुकूल नई स्थापनाओं के आधार पर उनकी प्रामाणिकता विशिष्ट ऐतिहासिक काल के आधार पर मानी जानी चाहिये, त्रैकालिक आधार पर नहीं । यह सत्य है कि आगमों के अनेक विवरण विशेषतः अमूर्त जगत् के और अनेक भौतिक जगत् के आज भी अनुकरणीय होंगे, शायद त्रैकालिक सत्य भी हों । अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आदि ऐसे ही सिद्धान्त हैं । हां, भौतिक विवरणों पर परचतुष्टय से विचार अपेक्षित है। विचारकों ने यह माना है कि जो सिद्धान्त या मान्यतायें युगानुरूप नहीं होतीं, वे जीवन्त नहीं बनी रह पातीं। फलतः प्राचीन शास्त्रीय मान्यताओं के युगानुकूलन की प्रक्रिया अविरत चलनी चाहिये। यही वैज्ञानिकता की कसौटी है, जीवन्तता का निष्कर्ष है और धर्म के सुख-संवर्धक रूप की सक्रियता का प्रेरक है । यह प्रक्रिया ही हमें पूर्वोक्त समस्याओं के निराकरण में सहायक होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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