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आगमिक मान्यताओं में युगानुकूलन : (307)
इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे आगम या आगम- कल्प ग्रंथ विशेष क्षेत्रों में, विशेष कालों में, विविध पर्यायों और विविध रूपों (अर्थ, ग्रंथ) में रचित हैं ।
शास्त्रीय मान्यताओं के कारण वर्तमान समस्यायें : (अ) क्षेत्रगत दृष्टि
जैन भूगोल विश्व को स्थिर मानता है, पर पिछले और आज के भौगोलिक परिवर्तनों को देखते हुए यह अवधारणा विचारणीय है । शास्त्रों पर अश्रद्धा न हो, इसलिये एक विश्रुत परम्परावादी पंडित (मेरे गुरु, अब स्वर्गीय) ने मुझे सुझाव दिया था कि इस विषय में समाज में चर्चा ही नहीं करनी चाहिये । अब क्षेत्रों में परिवर्तन हुआ है, मगध क्षेत्र में उपदिष्ट अर्थागम एवं वहीं पर संकलित आगम सम्पूर्ण भारत एवं विश्वक्षेत्री मान लिये गये । इस क्षेत्र परिवर्तन से अनेक समस्यायें सामने आई हैं ।
1. क्षेत्रग्रत समस्यायें विश्व के विभिन्न क्षेत्रों (यूरोप, अमरीका, ग्रीनलैंड, उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव आदि) में सूर्योदय, सूर्यास्त की अनेक विविधाओं (18 घंटे की रात या दिन, छह महीने की रात या दिन आदि) के कारण इसके आचार (जैसे रत्रि - भोजन - त्याग, कुंयें का पानी, कंडे एवं लकड़ी की आग से बना भोजन, देवपूजा या स्थंडिल भूमि या मिट्टी पर शौच आदि ) का - पूर्णतः पालन नहीं हो सकता ।
2. औद्योगीकरण का प्रभाव : इसके कारण व्यस्त हो रही जीवनचर्या में तथा शीत ऋतु की जटिलता के कारण सामान्य आहार की चर्चा कठिन हो जाती है । फलतः प्रशीतित एवं शीघ्रभक्ष्यी खाद्य और उनकी विविधता स्वीकार करनी पड़ती है जो 'तीर्थकर' के सम्पादक के अनुसार हानिकारक है। इन परिस्थितियों में साधुधर्म, विशेषतः दिगम्बर साधु धर्म, का पालन भी नहीं हो सकता । फलतः विश्व की 99.98 प्रतिशत जनता (जैन तो मात्र 0.02 प्रतिशत ही हैं) जैन सिद्धान्तों के ज्ञान, पालन एवं जीवन - लक्ष्यों की प्राप्ति से विमुख ही रहेगी । ऐसी स्थिति में जैन धर्म की विश्वधर्म की मान्यता का अर्थ क्या है? इसके लिये उसे अपनी आचार - प्रक्रिया में क्षेत्र - काल - भावगत परिवर्तन आवश्यक है ।
3. भक्तिवाद : विश्व के अधिकांश धर्म भक्तिवाद के प्रचण्ड उद्घोषक हैं और उसी का वातावरण बना रहे हैं । 'तारणहार की मनोवैज्ञानिता से स्वावलम्बी जैन संस्कृति विशेष रूप से प्रभावित होती है ।
4. जनभाषा : भ. पार्श्व और महावीर ने जनभाषा में उपदेश दिये थे और जिनवाणी भी सर्व समाहारी अर्ध-मागधी भाषा में ग्रथित हुई है। विश्व के प्रायः देशों की जनभाषा भिन्न-भिन्न है। जिनवाणी इन भाषाओं में नहीं है। अतः उसकी प्रभावकता कैसे विश्वव्यापी हो सकती है ?
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