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(xv) मूलाधार के रूप में द्रव्यवाद, जीववाद, आत्मवाद, अहिंसावाद, कर्मवाद, ध्यान, मंत्र, पुण्य-पाप एवं चैतन्य से सम्बन्धित लेख, जैन आहार-शास्त्र, इतिहास एवं जीवनी, अनुवाद की समस्यायें, विदेशों मे धर्म-प्रचार-प्रसार, ग्रन्थ-समीक्षायें, जैन धर्म की वैज्ञानिकता, यात्रा से सम्बन्धित अनेक लेख तथा दैनन्दिनी के दो उद्धरण समाहित हैं।
इसके अंग्रेजी उद्यान के पांच खंडों के 20 लेखों में जैन सिद्धान्तों के विविध पक्षों, जैन शास्त्रों में वर्णित विज्ञान की विविध शाखायें एवं चतुर्लेखी विविधा समाहित है। यह सामग्री डा. जैन की साहित्य-वाटिका की प्रतिनिधि सामग्री है जिसमें नवोन्मेष की प्रेरणा है। इसमें प्राचीनता को नवीन एवं वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है जो आधुनिक युग में प्राचीनता के प्रति रुचि बनाये रखेगा और उसके नवीन एवं युगानुकूल रूपांतरण की ओर सक्रिय रूप से आकर्षित करेगा, जिससे वर्तमान में भी जैन विद्या की वैज्ञानिकता प्रतिष्ठित की जा सके।
वास्तव में मैं डा. एन. एल. जैन का शिष्य रहा हूं। उन्होंने मुझे एक वर्ष में विज्ञान विषयों के कालेज स्तर की शिक्षा दी थी जिससे मैं चिकित्सा विज्ञान का विद्यार्थी बन सका। मैं सदैव ही उनका शिष्य रहूंगा। क्योंकि उनका ज्ञान अत्यंत व्यापक है शिष्य का शिक्षक के प्रति कर्त्तव्य का निर्वहन एवं सतत् शिक्षण ही मुझे सम्पादन का कार्य करने में संबल दे सका जो उनके प्रामाणिकता से परिपूर्ण विभिन्न विषयों को उनकी विभिन्न पुस्तक-पुस्तिकाओं एवं लेखों से संकलित कर सका। यह शिष्य का गुरु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन है। __ अन्त में, मैं यह कह सकता हूं कि 'नन्दवन' धर्म एवं दर्शन को वैज्ञानिक पटल पर हुई उपलब्धियों के आस्वादन द्वारा नये अध्येताओं को अन्वेषण के लिये प्रेरित करेगा।
महावीर जयंती 2005
डा. शिखर चंद्र लहरी
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