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________________ (xiv) पुस्तकालय कहते हैं। इनमें विभिन्न भाषाओं का साहित्य उपवन के अनुरूप होता है, विभिन्न विषयरूपी मनोरंजक एवं, ज्ञानवर्धक वृक्ष होते हैं, इनमें विभिन्न कोटि के साहित्याराधकरूपी पक्षी होते हैं। ये विद्यामंदिर कहलाते हैं जिनके विशाल प्रासाद-भवन होते हैं। वस्तुतः प्राकृतिक वनों के विपर्यास में, इन प्रासादों में ही साहित्यिक वन प्रतिष्ठित रहते हैं। विभिन्न विषयों की पुस्तकों की आलमारियां मंदिर की वेदियों के समकक्ष होती हैं। यहां बाह्य हरीतिमा तो नगण्य होती है, पर इनकी अंतरंग विविधा अत्यन्त ज्ञानवर्धक एवं मनोहारी होती है। साहित्य-रुचिकों के लिये ये विद्यामंदिर ही नंदनवन हैं जो विद्या एवं ज्ञान के क्षेत्रों को विस्तारित कर उनका प्रकाश फैलाते हैं। ये प्राकृतिक वनों के समान ही मनोरम, मनोहारी एवं ज्ञानयोगियों के लिये आनंदकारी होते हैं। इनमें इतिहास एवं संस्कृति का भूतकाल संरक्षित रहता है, विविध सभ्यताओं एवं कलाओं का वर्तमान उपनीत रहता है और भविष्य की कल्पनाओं का संसार पाया जाता है। फलतः ये ऋतु-परिवर्तनी प्राकृतिक वनों एवं उपवनों से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। जैनों के मध्यलोक के विवरण से संकेत मिलता है कि सुमेरु पर्वत पर स्थित 'नंदनवन' दूसरा वन है जो भूमितल से कुछ ऊपरी तल पर प्रतिष्ठित हैं। वस्तुतः यह 'नंदनवन' साहित्यिक वन की ही एक वाटिका है। इसे डा. नंदलाल जैन- विश्रुत जैनविद्यामनीषी एवं वैज्ञानिक ने किंचित् उच्चतर स्तर पर संजोया है। यह बहुत विशाल है। इसकी हिन्दी और अंग्रेजी की उप-वाटिकाओं में चौबीस प्रकार के विषय-वृक्ष हैं जिनमें 195 शीर्षक-टहनियां हैं और लगभग 50 पुस्तक-पुस्तिका-गुच्छ हैं। विषय-वृक्षों के अन्तर्गत आगम, धर्म, विज्ञान, पुरातत्त्व, रसायन, यात्रा, तथा जीवनी व आत्मकथायें आदि समाहित हैं। पुस्तक-पुस्तिकाओं के अन्तर्गत जैन विद्या की मौलिक तथा अनुदित पुस्तकें और विविध कोटि की सामग्री समाहित है। लेख रूपी टहनियों की अनेक कोटियां हैं। इनका विवरण पृथक से दिया गया है। इस बहुरूपिणी वाटिका के कुछ प्रमुख वृक्षों (विषय), गुच्छों (पुस्तक) व टहनियों (लेख) को प्रस्तुत 'नन्दनवन' में संजोया गया है। . 'नन्दनवन' के दोनों उद्यानों में चौदह विषय-वृक्षों से 44 टहनियां संकलित की गई हैं। इनमें भूतकाल से लेकर भविष्य काल के रूप दिये गये हैं। मुझे विश्वास है कि ये अपनी कोमलता एवं कठोरता के साथ मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन में सहायक होंगी। ये जैन धर्म के मान्यतारूपी वृक्षों की खर-पतवार का आलोडन कर उनमें कलमें और नई टहनियां रोपित करने का काम करेंगी। ये कुछ स्थानों पर बीजारोपण के समान सिद्ध होंगी। 'नन्दनवन' के हिन्दी, उद्यान के नौ खंडों के 24 लेखों में आगमों की युगानुकूल मूल्यांकनीयता एवं भाषा से सम्बन्धित लेख, जैन सिद्धान्त के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006597
Book TitleNandanvana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN L Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages592
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size25 MB
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