________________
प्रस्तावना
Preface
दृढ किये जाते हैं.
being. कायोत्सर्ग-कायोत्सर्ग यानी शरीर के ममत्व को छोड़ देना, जहाँ | kāyotsarga-kāyotsargameans to abandonattachmentof the body.Aslong तक व्यक्ति शरीर की चिन्ता में होता है वहाँ तक वह आत्म चिन्तन नहीं | asamanis busy in worry of the body, so longhe can not do self-contemplation. कर सकता. व्यक्ति के जीवन का अधिकतर समय खास करके शरीर | Most of the time in life passes away mostly in the maintenance of body and की साज-सज्जा और खान-पान आदि द्वारा शरीर पोषण में ही व्यतीत | nourishment of body witheating and drinking itself. In such hecannot find time हो जाता है. ऐसे में वह अपनी आत्मा को याद करने का समय ही नहीं | for thinking of his won soul. He would not mind it however much he may worry निकाल पाता. उसे यह ख्याल ही नहीं रहता कि इस शरीर की कितनी | and however much he may nourish his body, it will perish one day definitely. If भी चिन्ता की जाए और कितना भी पोषण किया जाए, किन्तु एक दिन | self-contemplation is to be done, he must forget his body and the name of that तो वह अवश्य नष्ट होकर ही रहेगा. आत्म चिन्तन अगर करना है तो | sacredrite iskāyotsarga. The meaning of kāyotsargaisact of makingcorporeal शरीर को भूल जाना नितान्त आवश्यक है और उसी पावन क्रिया का | to incorporeal; act of making kasayātmā [soul with ill-wills like anger etc.] into नाम है कायोत्सर्ग. कायोत्सर्ग का मतलब है शरीरी को अशरीरी बनाने | a supreme soul. की क्रिया; कषायात्मा को परमात्मा बनाने की क्रिया.
प्रत्याख्यान - प्रत्याख्यान का मतलब है आत्मा का अहित करने | pratyakhyāna-pratyakhyana means abandonment of things harmful to the वाली चीजों का त्याग और हित करने वाली चीजों का स्वीकार, भौतिक | soul and acceptance of things beneficial to the soul. Use and reuse of physical पदार्थों का भोग और उपभोग एवं उन पदार्थों के प्रति आसक्ति आत्मा | materials and attachment towards those materials is calamitousand harmful to के लिए अनर्थकारी एवं अहितकारी हैं. उन चीजों का जितना त्याग किया the soul. As much as those things are abandoned, so much it becomes beneficial जाता है उतना ही वह आत्मा के लिए उपकारी बन जाता है. आत्मा | tothesoul.Whenattachment for anysubstance existsin thesoul then it becomes में जब किसी पदार्थ के प्रति आसक्ति बनी रहती है तब वह आत्मा के | bondage for the soul. And as long as this attachmentisnot removed, man can't लिए बंधन बन जाती है और आसक्ति जब तक दूर नहीं की जाती तब | acquire his spiritual freedom. The rite freeing soul from this attachment is
प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन - भाग-१
Pratikramana Sutra With Explanation - Part-1
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org.