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५. इरियावहिया सूत्र
परस्पर
सूत्र विभाग ... पाँव से मारे हों, धूल से ढके हों, भूमि के साथ कुचले गये हों, शरीर से टकराये गये हों, थोड़ा स्पर्श कराया गया हो, कष्ट पहुंचाया गया हो, खेद पहुंचाया गया हो डराये गये हों, एक स्थान से दूसरे स्थान पर फिराये गये हों, प्राण रहित किये गये हों, मेरे ये सब दुष्कृत्य मिथ्या हों.
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विशेषार्थ :
प्रतिक्रमण :- आत्म निरीक्षण द्वारा जीवन का पर्यवलोकन कर अपने से हुई विराधनाओं का पश्चात्ताप पूर्वक भविष्य में पुनः न करने का निर्णय कर, दूषित बनी आत्मा को शुद्ध कर पुनः आत्म स्वभाव में लाने की क्रिया.
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१. अतिक्रम - विराधना के लिये प्रेरित होना.
२. व्यतिक्रम - विराधना करने के लिये तैयार होना.
३. अतिचार - कुछ अंश में विराधना करना.
४. अनाचार - पूर्णतया विराधना का सेवन करना.
विराधना :- सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूपी मोक्षमार्ग का पालन न virādhanā:- Not to observe or to pervert the path of salvation of right faith, right करना अथवा विकृत रूप से पालन करना.. चार प्रकार की विराधना :
knowledge and right conduct.
प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन भाग १
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sūtra part
5. iriyāvahiyā sūtra ...are being kicked by feet, are being covered by dust, are being trampled with ground, are being collided with each other with their bodies, are being touched a little, are being troubled, are being distressed, are being frightened, are being shifted from one place to another, are being deprived of life; all these misdeeds of mine may become fruitless............ ............7. Specific meaning :
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pratikramana: The rite of bringing back the soul into self, purifying the polluted soul inspecting the daily routine of life minutely through introspection and determining not to repeat the guilt committed again in future with repentance.
Four types of viradhanā :
1. atikrama- To get inspired to commit the guilt. 2. vyatikrama-To get ready to commit the guilt. 3. aticāra - To commit the guilt / misdeed partially. 4. anācāra- To commit the guilt completely.
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Pratikramana Sūtra With Explanation Part-1
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