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जाकी सोलह स्वर्ग तैं आगे नाही गम्य |
तिस नारीको यौ कहै रम्यै (?) मोक्षपद रम्य ।। ५१ । ।
सवैया इकतीसा -
जाकै सब मलद्वार धारे है निगोद भा (?) र कबहूं न अविकार हिंसाते रहतु है । सिथिल सुभाव लिए परपंच सब किए
लाज कौ समाज (?) धरै अंबर बहुत है । ।
छट्ठा गुनथांन नांहि थिरता न ध्यान मांहि मास मास रितु ताहि संकता लहतु जगत विलंबिनी कौं हीनदसा लंबिनी कौ
है ।
यातै ही नितंबिनी कौ मौख न कहतु है । । ५२ ।।
दोहरा
मुकति कामिनी कौ रमै न कामिनी
........... होइ (?) परगट ही देख । । ५३ ।। समय विरोध देखीयै परगट चित न विचार | मल्लिनाथ जिनको कहै मल्लिकुमारि नारि । । ५४ । ।
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अडिल्लस्वर्गभूमि पाताल लोक मै देखियौ
नारी नायक सुनौ कहूं न विसेषियै ।
जगतबंधु अरिहंत देवपद कौ धरै
पर
अधीन
आचरै ।। ५५ ।।
जो
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हीननिंदपद
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