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सातमी धरा तै आगै आतमीक रस जागै
तहां वंद्यवंदक विभाव नाही रहे है।। साधकदसा मैं जहां बाधक है ऐसे भाव ।
__तहां जिन जिन वंदे मंद कैसे कहै है। पूरन सरूपधारी वीतराग अविकारी
वंदनीक एकै मांनी ग्यानी सरदहै है।।४७।।
सवैया तेईसाकेवलग्यानविषै जिनवीर
कहै अनजान अचानक छींक्यौ । सो न बनै तब छींक उठे जब
वात कफामय पित्त जीकौ ।। धातु विवर्जित निर्मल इ(ई)स
___ सरीरविषै नही रोग रतीकौ । छीक कलंक अडंकित अंकित
सुद्ध दसा तहि दोष नहीं कौ।।४८ ।।
अडिल्लतिरदंडी तापसी कुलंगी भेस रचै
आवत सुनि जिन वीर नाथ उपदेसयौ
(?)। गौतम स्वामी गनधर व्रत धरै जैन कौं
वाकी सनमुख गयौ भवातिसौं लेन कौ ।।४६।।
दोहराअविरत सम्यकदरसनी
करै न कुमती मन। क्यों करि गनधर पूज्य पद
करै सुभ गति विधान । ५० ।।
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