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Jambū-jyoti
Cp. प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते, अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत् तन्मयो भवेत्...
(Md. Up. 2. 2. 4
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Cp. इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुन र्धनम्...
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....गमिस्सामो भिक्खमाणा कुले कुले....
Cp. पुत्रैषणायाश्च वित्तैषणायाश्च लोकैषणायाश्च व्युत्थायाथ भिक्षाचर्यं चरन्ति...
+ धनुस्तारं शरो ह्यात्मा... शरवत् तन्मयो भवेत्.... संखचक्कगयाधरे...
+ संखचक्कयगसत्तिणंदगधरा...
Cp. शंखचक्रगदा... धरस्य वै...
इमं च मे अत्थि इमं च मे नत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं ...
Bansidhar Bhatt
+
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Cp. क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत् कवयो वदन्ति... जहा उ चरई मिगे, एवं धम्मं चरिस्सामि...
+ मिगचारियं चरित्ताणं गच्छइ मिगचारियं...
..ये ह्युपवसन्त्यरण्ये शान्ता विद्वांसो भैक्षचर्यां चरन्तः.... त्रिषु वर्णेषु भिक्षाचर्यं चरेत्...
असिधारागमणं चेव दुक्करं चरिउं तवो...
+ ...गोवन्मृगयते मुनिः..
+ गोधर्मा मृगधर्मा वा... न लिप्यते कर्मणा पातकेन वा...
... भासच्छन्ना इवाग्गिणो...
+ भासच्छण्णो जहा वण्ही...
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Cp.. .... दग्धेन्धनमिवानलम् ....
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.. प्रच्छन्नो भस्मनेव हुताशन:..
+
... भस्मच्छन्नमिवानलम् ...
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+ मिगचारियं चरिस्सामि सव्वदुक्खविमोक्खणि....
Cp. मृगैः सह परिस्पन्दः संवासस्तेभिरेव च ।
तैरेव सदृशी वृत्तिः प्रत्यक्षं स्वर्गलक्षणम् ॥ (Bdh. Dh. Su. 3. 2. 19 = 3. 2. 22)
+ कृच्छ्रां वृत्ति असंहार्यां सामान्यां मृगपक्षिभिः....
(Bdh. Dh. Sū. 3. 3. 21 )
(Sny. Up. 2.78) (Ps. Sū. 5. 18-20)
=
... भस्मच्छन्न इवानलः...
. भस्मांगवृतांगान् इव हव्यवाहान्... ... गूढोऽग्निरिव दारुषु ...
... यथानलो भस्मवृतश्च वीर्यवान्...
. भस्मच्छन्नानिवाग्नी स्तान्... ...जुगमित्तं च खेत्तओ... ...पुरओ जुगमायाए पेहमाणो.....
. जुगमायाए पेहाए...
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Dhbd. Up. 14) (Rhd. Up. 38 ) (Utt. 11. 21) (Pvy. 15) (Gputt. Up. 1)
(Utt. 14.15 )
(Gt. 16.13) (Utt. 14.26)
(Bdā. Up. 4. 4. 23)
(Md. Up. 1. 2. 11)
(Sny. Up. 1) (Utt. 19.37 )
(Kth. Up. 1. 3. 14) (Utt. 19, 77-80)
(Utt. 19. 81-84) (Utt. 19.85)
(Utt. 25.18) ( Rs. 15. 1747) (Śv. Up. 6. 19) (MBh. 4. 34.29)
(MBh. 4.64.6) (MBh. 3. 262. 30) (MBh. 1. 178. 9)
(MBh. 12. 137.40)
(MBh. 4. 6.3) (MBh. 13.59.7)
(Utt. 24.7) (Daśa. 5. 1.3) (Daśa. 6. 150)
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