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दोहरा —
चौपड़
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Padmanabh S. Jaini
मुकति कामिनी कौ रमै न कामिनि x x x x x x होइ (?) परगट ही देख ॥५३॥ समयविरोधी देखीयै परगट चित न विचार । मल्लिनाथ जिन कौ कहै मल्लिकुमारि नारि ॥५४॥
अडिल्ल - स्वर्गभूमि पाताललोक मै देखियौ, नारी नायक सुनौ कहूं न विसेषियै । जगतबंधु अरिहंत देवपद कौ धेरै, पर अधीन जो हीन निंद पद आचरै ॥५५॥
जौं नारी कौं जनपद मानौ तौ ताकी प्रतिमा करि जानौ ।
पुरुष आकार एक ही बंदौ, नारीरूप क्यौं न अभिनंदौ ॥५६॥
जौ नितंबिनी बन सोहै, कुचरूपादिक मंडित हो है ।
तौ लज्जा करि कामिनी रूपी, क्यौं करि जिनवर होहि अनूखी ॥५७॥
जाके दरसत परसत रागादिक मिटि जाइ ।
तिस नररूपी ईस कौं वंदौ सीस नवाइ ॥५८॥
कहै युगल हरिखेत निवासी, काहू देव हयौं सविलासी । पूरब बैर जानि दुख दीनौ, अवगाहन करि छायौ कीनौ ॥५९॥
सोइ भरतखंड फिरि आन्यौ, मथुरानगर राज दे मान्यौ ।
पापी करि तिनि मांस खवायौ, नरक नगर के पंथ चलायौ ॥६०॥
तिसके कुलि हरिवंस बखानै, सत्यारथ उपदेस न मानै । जुगल सर्व ही सुरगतिगामी, नरक न सेवहि तिरियु (?) परिणामी ॥ ६१ ॥
दोइ कोस की तिसकी काया, सुर क्यौं करि लघु रूप बनाया। जौ तुम ईसहि अछेरा मानौ तौ भी नाहि बनै मनि आनौ ॥६२॥
काल अनंत अनंत गए तै, एक एक ही युगल गहे तै । सब हरिखेत भूमि का खाली, व्हैकै मिटै जुगल परनाली ||६३॥
सब गणती के युगल है घटे बढै नहीं कोइ । मरणकाल ही जुगल कैं आइ युगलीया होई ॥६४॥
राखत चउदह उपकरण मुनि कौ नाही दोष । परिग्रहत्यागदसा विषै करिहि परिग्रह पोष ॥६५॥
Jambū-jyoti
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