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________________ - शास्त्रवार्ता समुच्चय में उन्होंने बुद्ध के अनात्मवाद और न्याय दर्शन के ईश्वर कर्तृत्ववाद वेदान्त के सर्वात्मवाद (ब्रम्हवाद) में भी संगति दिखाने का प्रयास किया। उन्हीं के ग्रन्थ षड्दर्शन समुच्चय की टीका में आचार्य मणिभद्र लिखते हैं : पक्षपाती न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः । । मुझे न तो महावीर के प्रति पक्षपात है और न कपिलादि मुनिगणों के प्रति द्वेष है। जो भी वचन तर्कसंगत हो उसे ग्रहण करना चाहिए। इसी प्रकार आचार्य हेमचन्द्र ने शिव प्रतिमा को प्रणाम करते समय सर्व देव समभाव का परिचय देते हुए कहा था - भवबीजांकुर जनना, रागाचा क्षयमुपागता यस्य । ब्रम्हा वा विष्णुर्वा हरो, जिनो वा नमस्तस्मै ।। Jain Education International 31 सार परिभ्रमण के कारण रागादि जिसके क्षय हो चुके हैं, उसे मैं प्रणाम करता हूं, चाहे वह ब्रम्हा हो, विष्णु हो, शिव हो या जिन हो । उपाध्याय यशोविजय जी लिखते है "सच्चा अनेकान्तवादी किसी दर्शन से द्वेष नहीं करता। ( दर्शनों) को इस प्रकार वात्सल्य दृष्टि से देखता है जैसे कोई क्योंकि अनेकान्तदी की न्यूनाधिक बुद्धि नहीं हो सकती । कहे जाने का अधिकारी वही है, जो स्याद्वाद का आलम्बन लेकर सम्पूर्ण दर्शनों में समान भाव रखता है। माध्यस्थ भाव ही शास्त्रों का गूढ़ ह रहस्य है, यही धर्मवाद है। माध्यस्थ भाव रहने पर शास्त्र के एक पद का ज्ञान भी सफल है, अन्यथा करोड़ों शास्त्रों का ज्ञान भी वृथा है। " एक सच्चा जैन सभी धर्मो एवं दर्शनों के प्रति सहिष्णु होता है। वह सभी में सत्य का दर्शन करता है। परमयोगी जैन सन्त आनन्दधनजी लिखते हैं : घट् दरसण जिन अंग भणीजे, नमि जिनवरना चरण्उपासक, न्याय षडंग जो सारे । षटदर्शन आराधे रे।। For Private & Personal Use Only वह सम्पूर्ण दृष्टिकोण पिता अपने पुत्रों को । वास्तव में सच्चा शास्त्रज्ञ www.jainelibrary.org
SR No.006502
Book TitleKeynote Address of Dr Sagarmal Jain at Calcutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahadeolal Saraogi
PublisherMahadeolal Saraogi
Publication Year
Total Pages72
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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