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________________ 20 आर्थिक समता का आधार अपसिाह का सिद्धान्त : आधुनिक मानव समाज की सबसे बड़ी बुराई संग्राह और शोषण की दुष्प्रवृत्तियां हैं, जिसके कारण समाज में वर्ग-विद्वेष एवं संघर्ष पनपता है। एक ओर मानवता रोटी के टुकड़ों के अभावों की पीड़ा में सिसकती है तो दूसरी ओर ऐशो आराम की रंग-रेलियां चलती हैं। यह आर्थिक वैषम्य सामाजिक शान्ति को भंग कर क्षा है। ___ भगवान महावीर ने उत्तराध्ययन सूत्र में आर्थिक वषम्य तथा तदानित सभी दुःखों का कारण तृष्णा की वृत्ति को माना। वे कहते हैं कि जिसकी तृष्णा समाप्त हो जाती है, उसके दुःख भी समाप्त हो जाते हैं। वस्तुतः तृष्णा का ही दूसरा नाम लोभ है और इसी लोभ से ह वृत्ति का उदय होता है। “दवकालिक सूत्र* मे लोभ को समस्त सद्गुणों का विनाशक माना गया है। जन विचारधारा के अनुसार तृष्णा एक ऐसी दुस्तर खाई है जितका कभी अन्त नहीं आतTI "उत्तराध्ययन सूत्र में इसी बात को स्पष्ट करते हुए भगवान महावीर ने कहा है कि यदि सोने और चाँदी के कैलाश के समान असंख्य पर्वत भी खड़े कर दिये जाएं तो भी यह तृष्णा शान्त नहीं हो सकती, क्यों कि धन चाहे कितना भी हो वह सीमित है और तृष्णा अनन्त( असीम) है। अत: सीमित साधनों से असीम तृष्णा की पूर्ति नहीं की जा सकती । वस्तुतः तृष्णा के कारण संवृत्ति का उदय होता है और यह माह वृत्ति आसक्ति के रूप में बदल जाती है और यही आसक्ति परिग्रह का मूल है। "दशवकालिक सूत्र के अनुसार आसक्ति ही वास्तविक परिग्रह है। भारतीय अषियों के द्वारा अनभूत यह सत्य आज भी उतना ही यथार्थ है जितना कि उस यग में था जबकि इसका कथन किया गया होगा। न केवल जनदर्शन में अपित बौद्ध और वैदिक दर्शनों में भी तृष्णा को समस्त सामाजिक वैषम्य और वैयक्ति दुःखों का मूल कारण माना गया है। क्यों कि तृष्णा में संसाहवृत्ति उत्पन्न होती है - माह शोषण को जन्म देता है और शोषण से अन्याय का चक्र चलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006502
Book TitleKeynote Address of Dr Sagarmal Jain at Calcutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahadeolal Saraogi
PublisherMahadeolal Saraogi
Publication Year
Total Pages72
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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