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श्री शिवालिगभसूत्र भाग दूसरे ही विषयानुभशिष्ठा विषय
पाना नं तीसरी प्रतिपति 6.१ नैरयिष्ठ छवों छा निरुपाया रत्नप्रभा पृथ्वी ठे भेटों छा निरुपाय प्रत्येष्ठ पृथिवी में रहे हुवे नरठावासों छा निरुपाया रत्नप्रभा पृथ्वी हे जरठांऽ आष्ठिा मेवं अन्य पृथ्वी में रहे हुवे धनोध्याहि माहत्य ठा निरुपाया रत्नप्रभा पृथ्वी क्षेत्रय्छेह छा ज्थन रत्नप्रभा पृथ्वी संस्थान ठा निरुपाया
૧પ सातों पृथिवीयां लोछो स्पर्शनेवाली है या अलोटो स्पर्श उरती है? सातों पृथ्वी धनोधि धनवात, तनुवात ठे तिर्थमाहत्य ठा निरुपाया
वों ही उत्पत्ति ठा निरुपा प्रति पृथ्वी ठे विभाग पूर्व उधर ठे मेवं अधस्तन यरभान्त ठे अन्तर छा थन रत्नप्रभाटि पृथ्वीयों डे परस्पर में अगली २ पृथिवीवियों ठो लेटर पूर्व पूर्वठी पृथिवीष्ठा आहत्य मेवं विस्तार सेतुल्यत्वाटिठा निरुपाय
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उ४
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१४
પ૭
ठूसरा उद्देशा १२ प्रत्येष्ठ पृथ्वी में ठितने छितने नरडावास होने छा ज्थन ૧૩ नरठावासों संस्थान-आठार ठा निरुपाया
नरठावासोंठेवार्थगन्ध आटिठा निरुपाया ૧૫ नरठावासों हे महत्व-विशालपनेठा निरुपाया
नरठावास ठिं द्रव्यमय याने ठिसठे अने है ? १७ नारठ छावों ही उत्पत्ति छा निरुपारा १८ प्रत्येऊ नारठवों संहनन ठा निरुपारा
नारवों उछवास आटिठा निरुपा
नारठों क्षुधा मेवं पिपासा आहिछा निरुपाया २१ नारों नरभव दु:जठे अनुभवन छा निरुपा
नारठों ही स्थितिष्ठाCष्ठा निरुपाया २३ नरठ में पृथिव्याहि टे स्पर्शाहिठा निरुपाय
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જીવાભિગમસૂત્ર