SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) महिकाश्वेत—शीतकाल में श्वेत वर्णवाली सूक्ष्म जलरूपी जो धूमस पड़ती है वह महिकाश्वेत कहलाती है, उस समय स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । (१०) रजोद्घात—चारों दिशाओं में तेज हवा के साथ बहुत धूल उडती हो और सूर्य ढँक गया हो तो रजोद्घात कहलाता है, उस समय स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । (९) ऐतिहासिक शरीर सम्बन्धी १० अस्वाध्याय — (११,१२,१३) हाड-मांस और रुधिर ये तीन वस्तुएँ जब तक अग्नि से सर्वथा जल न जाएँ, पानी से धुल न जाएँ और यदि सामने दिखाई दें तो स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । फूटा हुआ अण्डा भी हो तो भी अस्वाध्याय होता है । (१४) (१५) (१६) मल-मूत्र – सामने दिखाई हेता हो, उसकी दुर्गन्ध आती हो तब-तक अस्वाध्याय होता है । I श्मशान — इस भूमि के चारों तरफ १०० - १०० हाथ तक अस्वाध्याय होता है । (१९) चन्द्रग्रहण—जब चन्द्रग्रहण होता है तब जघन्य से ८ मुहूर्त और उत्कृष्ट से १२ मुहूर्त तक अस्वाध्याय समझना चाहिए | (१७) सूर्यग्रहण – जब सूर्यग्रहण हो तब जघन्य से १२ मुहूर्त और उत्कृष्ट से १६ मुहूर्त तक अस्वाध्याय समझना चाहिए । (१८) राजव्युद्गत — नजदीक की भूमि पर राजाओं की परस्पर लड़ाई चलती हो, उस समय तथा लड़ाई शान्त होने के बाद एक दिन-रात तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । पतन — कोई बड़े राजा का अथवा राष्ट्रपुरुष का देहान्त हुआ हो तो अग्निसंस्कार न हो तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए तथा उसके स्थान पर जब तक दूसरे व्यक्ति की नई नियुक्ति न हो तब तक ऊंची आवाज में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । (२०) औदारिक शरीर — उपाश्रय के अन्दर अथवा १०० - १०० हाथ तक भूमि पर उपाश्रय के बाहर भी पञ्चेन्द्रिय जीव का मृत शरीर पड़ा हो तो जब तक वह निर्जीव शरी वहाँ पड़ा रहे तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । (२१ से २८) चार महोत्सव और चार प्रतिपदा - आषाढ़ी पूर्णिमा ( भूत महोत्सव), आसो पूर्णिमा (इन्द्रिय महोत्सव), कार्तिक पूर्णिमा ( स्कन्ध महोत्सव), चैत्र पूर्णिमा (यक्ष महोत्सव) इन चार महोत्सवों की पूर्णिमाओं तथा उससे पीछे की चार, कृष्ण पक्ष की चार प्रतिपदा (ऐकम) इस प्रकार आठ दिनों तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए ।
SR No.006442
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages181
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy