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________________ ૪-પાંચે અસ્તિકાય ભૂતકાળમાં હતા, વર્તમાનમાં છે અને ભવિષ્યકાળમાં હશે જ, (अयला) अचला:-ते। अन्य (धुवा) ध्रुवा:-ध्रुव छ, (णिइया) नियता:नियत छ, (सासया) शाश्वता:-चत छ, (अक्खया, अव्वया, अवटिया, णिचा) अक्षयाः, अव्ययाः, अवस्थिताः, नित्या:-क्षय, नाशरहित, अपस्थित मने नित्य छे (एवामेव) एवमेव-मे ४ प्रमाणे (दुवालसंगे गणिपिडगे) द्वादशांगो गणिपिटक:-मा शां३५ ५८४ (ण कयाइ ण आसि) न कदापि नासीत-ही न तु म भानी श४ाय तेभ नथी, (ण कयाइ णत्थि) न कदापि नास्ति-याश्य तेनु मस्तित्व नयी थेवी पात, पण मान्य नथी, (ण कयाइ ण भविस्सइ)न कदापि न भविष्यति-४॥ २हेशे नही मे पात पण मान्य नथी. मेटले ४ अणे मां तेनु मस्तित्व २डेशे . (अचले, धुवे, जाव अवहिए णिच्चे) अचल:, ध्रुवः, यावत् अवस्थितः, नित्यः-24Aa, ध्रुव, नियत, शाश्वत, भक्षय, अव्यय, मपस्थित मने नित्य छे. (एत्थ णं दुवालसंगे गणिपिडगे) अत्र खलु द्वादशांगे गणिपिटके-मा पिट४३५ मा२ मा (अणंता भावा) अनन्ता भावा-मन'त पs पाथ', (अणंताऽभावा) अनन्ताः अभावा:-मनात समाव३५ पार्थी, (अणताहेऊ) अनन्ता हेतवःसनत हेतु, (अगंता अहेऊ) अनन्ता अहेतवः मनात महतु. (अणंता कारणा) શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર 3६७
SR No.006414
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages514
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size20 MB
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