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उपर सर्वहा Eष्टि रजनेवाले, अव्यायाध आनन्टस्व३५ भोक्ष अभिलाषी और उषायों से निवृत होते हुसे यथावस्थित तोडी-धर्भलोअथवा विषयलोठी उपेक्षा रते हमे थे, वे याहे पूर्व-आहिटिसी भी हिशाभे रहे हमे
हों; सत्य भार्ग मेंही स्थित थे। २१ ग्यारहवें सूत्रछा सवतरश और ग्यारहवां सूत्र। २२ वीर-सभित-आदि विशेषाशोंसे युज़्त उन महापु३षोंडे
ज्ञानछा वर्शन हभ मागे उरेंगे । ज्या नछो उपाधि है?
पश्यन्छो उपाधि नहीं होती है। देश सभाति । २३ यतुर्थ शष्ठी टीठाडा उपसंहार ।
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॥छति यतुर्थोटेशः॥
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
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