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१ तृतीय हैश के साथ यतुर्थ उशा सम्जन्धप्रतिपाहन । २ प्रथम सूत्रऽा अवतरएा और प्रथम सूत्र । 3 वृद्धावस्था में ही स्वासप्रासाहि रोग होते हों, जेसी जात नहीं ! ये तो युवावस्था में ली होते हैं । उस रोगावस्था में उस प्राणी प्रा रक्ष प्रोर्घ सगा-सम्जन्धी नहीं होता है, और न वही प्राणी उस रोगावस्था से जाान्त अपने सगे-सम्जन्धीडा रक्षक हो सकता है।
४ द्वितीय सूत्रा अवतरा और द्वितीय सूत्र । 4 लोगसाधन धनी विनशशीलतामा वन ।
६ तृतीय सूत्रा अवतरा और तृतीय सूत्र । ७ लोगसाधन धन विनश्वर है; अतः लोगडी स्पृहा और लोगडे वियार डाली परित्याग डर हेना चाहिये ।
८ चौथे सूत्रा अवतरा और चौथा सूत्र ।
← प्राभलोग डा जासेवन महा लयस्थान है जेसा भनपुर अनगार या डरे ? सिडा उपदेश तथा उद्देश- समाप्ति |
॥ ऽति यतुर्थोदृशः ॥
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१ यतुर्थ हैशडे साथ प्रश्र्चम हैशडा सम्जन्धप्रतिपाहन । २ प्रथम सूत्रा अवतरा और प्रथम सूत्र ।
गृहस्थ प्रर्भसभारम्भ भिन हेतुओं से डरते हैं, उन हेतुओं प्रा प्रतिपाहन ।
४ द्वितीय सूत्रा अवतरा और द्वितीय सूत्र । 4 लविष्य में उपलोग के लिये पहार्थो के संग्रहमें प्रवृत गृहस्थों जीय संयमाराधनमें तत्पर अनगार झे डिस प्रकार रहना चाहिये ।
६ तृतीय सूत्रा अवतरा और तृतीय सूत्र । ७ साधुको प्रया, डाया और उसके अनुमोहन से रहित होना चाहिये ।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
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