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________________ ७४ तत्त्वार्थ सूत्रे मुच्यते । तत्र द्रव्यरूपमास्रवाधिकरणं छेदन-भेदनादिसाधनभूतं शस्त्रं दशविधम्, छिपते येन परशुवासी व्यघनादिना तत्-छेदनम्, एवं - भिद्यते येन मुग्दरादिना तद्भेदनम् एवं त्रोटन, विशसनो- बन्धन, यन्त्राभिघातादिक मक् सेयम् । द्रव्यशस्त्रं दशविधमेव, परश्वध - दहन - विष लवन स्नेह क्षाराऽम्लानि अनुपयुक्तस्य च मनोवाक्कायास्त्रयः, एतेन खलु द्रव्याधिकरणेन जीवाजीवौ विषयीकृत्य साम्परायिकं कर्म बध्यते । तदाहि पाणिपादशिरोऽधरादीनां परश्वधादिना छेदः, सचेतनाना मग्निना दहनम् विषेण हननम्, लवणेन पृथिवीकायाधूपघातः, स्नेहेन घृत तैलादिना चोपघातस्तेषाम्, क्षारेण सकल त्वमांस मज्जा अधिकरण को भावाधिकरण कहते हैं । छेदन-भेदन आदि का कारण शस्त्र द्रव्यरूप आस्रवाधिकरण है। उसके दश भेद हैं। फरसा, वसूला या घन आदि के द्वारा किसी चीज को छेदा जाय उसे छेदन कहते हैं । और मुद्गर आदि के द्वारा भेदन किया जाय उसे भेदन कहते हैं । इसी प्रकार त्रोटन - जिसके द्वारा तोडा जाय, विशसनजिससे नष्ट किया जाय, उद्बन्धन जिसे फांसी लगाई जाय या बांधा जाय तथा यंत्राभिघात - यंत्र के द्वारा आघात करना आदि भी समझ लेना चाहिए । द्रव्यशस्त्र के दश भेद हैं- परशु, दहन (आग) विष, लवण स्नेह (घी तेल आदि चिकने पदार्थ) क्षार अम्ल, (खटाई) और उपयोगशून्य जीव के मन, वचन तथा काथ । इस द्रव्याधिकरण से जीव और अजीव को विषय करके साम्परायिक कर्म का बन्ध होता है । जैसे हाथ, पैर, सिर, अधर (होठ ) आदि को परशु आदि से काटना-छेदन करना सचेतनों को आग से जलाना, विष से हनन करना, लवण હુથેાડા વગેરેની મદદથી કેઇ ચીજને છેદવામાં આવે તેને છેદન કરે છે અને મુગર આદિ દ્વારા ભેદન કરવામાં આવે તેને ભેન કહે છે. આવી જ રીતે ત્રાટન“જેના વડે તેડવામાં આવે, વિશસન-જેના વડે નાશ કરાય ઉદ્બન્ધન જેનાથી ક્સી લગાવવામાં આવે અથવા આંધવામાં આવે તથા યંત્રાભિઘાત યંત્ર વડે આપઘાત કરવા વગેરે પણ સમજી લેવા જોઈએ. द्रव्यशस्त्रनां दृश लेह छे-परशु, हडन (आग), विष, वायु, स्नेह (धी तेल वगेरे शिला पहार्थों), क्षार, अभ्स (जटाश) भने उपयोग શુન્ય જીવના મન વચન તથા કાય. આ દ્રષ્યાધિકરણથી જીવ અને અજીવને विषय मनावीने साभ्यरायि उर्भसंधाय छे. प्रेम उ-हाथ, यञ, भाथु, હાઠ આદિને ફરસી વગેરેથી કાપવા-છેદવા સચેતનાને અગ્નિ વડે સળગાવવા, ઝેર આપીને અન્ત આણવા, લવણથી પૃથ્વીકાય આદિના ઉપઘાત કરવા, ઘી શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૨
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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