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________________ ___ तत्त्वार्थस्ने षण्मासव्यवधानेनान्यः सिद्धयत्येव । इति द्वादशमन्तरद्वारम् ॥१२॥ ___ अनुसमयतो निरन्तरत इत्यनुपमयमाश्रित्य कति समयान् यावत् सिद्ध्यन्ति निरन्तरं नरन्तर्येण जघन्यतो द्वौ समयौ यावत् सिध्यन्ति, उत्कृष्टतोऽष्टौ समयान् यावत् निरन्तरं सिद्ध्यन्ति ततः परं व्यवच्छेदः। इति प्रयोदशमनुसमयद्वारम् ॥१३॥ संख्यातः-एकस्मिन्समये कति संख़्यका सिद्ध्यन्ति ? जघन्यत एकस्मिन् समये एक एव सिद्ध्यति, उत्कृष्टतोऽष्टाधिकं शतं सिद्ध्यति । तच्चास्मिन् भरतक्षेत्रेऽस्यामवसर्पिण्यां भगवतः श्रीऋषभदेवस्वामिनो निर्वाणसमये उत्कृष्टावगाह नावतामष्टोत्तरशत्तमेकस्मिन् समये सिद्धमिति श्रूयते । तच्चाश्चर्यभूतं कथ्यते शास्त्रे मध्यमावगाहनावतामेवाष्टोत्तरशतसंख्यकानामेकसमयसिद्धत्वेन कथितत्वात् । अन्तर छह मास का होता है। (१३) अनुसमयछार-अनुसमय अर्थात् बीच में एक भी समय का अन्तर हुए विना लगातार सिद्ध हों तो कितने समयों तक सिद्ध होते रहते हैं ? निरन्तर सिद्ध हों तो लगातार दो सनयों तक सिद्ध होते हैं। उत्कृष्ट लगातार आठ समयों तक सिद्ध होते रहते हैं आठ समय के पश्चात् अन्तर अवश्य होता है। (१४) संख्याद्वार-एक समय में कितने जीव सिद्ध होते हैं ? एक समय में जघन्य अर्थात् कम से कम एक जीव सिद्ध होता है। उत्कृष्ट अर्थात् अधिक से अधिक एकसमय में एक सौ आठ जीव सिद्ध होते हैं। इस अवसर्पिणी काल में इस भरत क्षेत्र में भगवान ऋषभदेव स्वामी के निर्वाण के समय में उत्कृष्ट अवगाहना वाले एक सौ आठ जीव एक साथ (एक ही समय में) सिद्ध हुए। यह एक अच्छेरा હોય છે. ઉત્કૃષ્ટ અન્તર છ માસનું હોય છે. (૧૩) અનુસમયદ્વાર–અનુસમય અર્થાત્ વચમાં એક પણ સમયનું અન્તર પડયા વગર સતત સિદ્ધ થાય તે કેટલા સમય સુધી સિદ્ધ થતાં રહે છે? નિરન્તર સિદ્ધ હોય તો લગાતાર બે સમય સુધી સિદ્ધ થાય છે. ઉત્કૃષ્ટ લગાતાર આઠ સમય સુધી સિદ્ધ થતાં રહે છે. આઠ સમય પછી અત્તર અવશ્ય પડે છે. (१४) सयाद्वा२- समयमा सा १ सिद्ध थाय छ १ मे સમયમાં જઘન્ય અર્થાત્ ઓછામાં ઓછા એક જીવ સિદ્ધ થાય છે ઉત્કૃષ્ટ અર્થાત અધિકમાં અધિક એક સમયમાં એકસે આઠ જીવ સિદ્ધ થાય છે. આ અવસર્પિણીકાળમાં આ ભરત ક્ષેત્રમાં ભગવાન ઋષભદેવ સ્વામીના નિર્વાણના શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૨
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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