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________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ. ६ सू. ५ साम्परायिककर्मास्रवभेदनिरूपणम् ३३ ssधिकरणिकी - २ प्राद्वेषिकी, प्रद्वेषेण निवृत्ता - प्राद्वेषिकी - ३ पारितापनिकी, परितापनं - ताडनादि दुःखविशेषरूपं तेन निर्वृता - परितापनिकी-४ प्राणातिपातिकी । यद्वा प्राणातिपातेन प्राणातिपाताऽध्यवसायेन यः प्राणातिपातः क्रियते, सा माणातिपातिकी - ५ प्राणाविषाताध्यवसायेन जायमाना ताडनादिरूपा क्रियाऽपि पाण वियोजनाभावेऽपि प्राणातिपातक्रियैव बोध्या । तथा मत्याख्यानिकी, अप्रत्याख्यानम् - अविरति स्तन्निमित्ता कर्मबन्धरूपा या क्रियाsसौ-अप्रत्याख्यानिकी -६ आरम्मिकी, आरम्भे भवाऽऽरम्भिकी- ७ पारिग्राहिकी परिग्रहे भवा - पारिग्रहिक - ८ मायापयिकी, माया प्रत्ययो यस्याः क्रियायाः सा तथा-९ मायाहेतुककर्मबन्धक्रियेत्यर्थः । तथा मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी, मिथ्यादर्शनं - मिध्यात्वं, प्रत्ययः - कारणं यस्याः सा - मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी -१० दार्शनिकी, दर्शनादयः (३) प्राद्वेषिकी - देश से होने वाली क्रिया । (४) पारितापनिकी - -ताडन आदि परिताप से होने वाली क्रिया । (५) प्राणातिपातिकी - प्राणियों के प्राणों का वियोग करना अथवा प्राणातिपात के अध्यवसाय से प्राणातिपात करना । प्राणातिपात के विचार से की जाने वाली ताडन आदि रूप क्रिया प्राणों का वियोग न होने पर भी प्राणातिपातिकी क्रिया ही समझनी चाहिए । (६) अप्रत्याख्यानिकी - अविरति के कारण होने वाली कर्म बन्ध रूप क्रिया । (७) आरंभिका- आरंभ से होने वाली क्रिया । (८) पारिग्रहिकी - परिग्रह से होने वाली क्रिया । (९) मायाप्रत्ययिकी - मायाचार से होने वाला कर्मबन्ध | (१०) मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी - मिथ्यात्व के कारण होनेवाली क्रिया । (3) आद्वेषिडी-द्वेषथी थनारी डिया. (४) पारितापनिडी - ताउन आदि परितायथी थनारी डिया. (५) प्राणातिपातडी - प्रालीयोना प्रशनो वियोग ४२वे अथवा आशाતિપાતના અય્યવસાયથી પ્રાણાતિપાત કરવા. પ્રાણાતિપાતના આશયથી કર વામાં આવતી તાડન આદિ રૂપ ક્રિયા-પ્રાણાના વિયેાગ ન થવા છતાં પણ પ્રાણાતિપાતની ક્રિયા જ સમજવી જોઈ એ. (૬) અપ્રત્યાખ્યાનિકી-અવિરતિના કારણે થનારી કમબન્ધ રૂપ ક્રિયા. (७) आरं लिए -मालथी थनारी दिया. (८) पारिश्रडिडी - परिग्रहथी थनारी दिया. (E) भायाप्रत्ययिडी भायायारथी थनाइ उभमन्धन, (१०) मिथ्यादर्शन प्रत्ययिडी - मिथ्यात्वना रणे थनारी डिया, त० ५ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૨
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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