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तत्त्वार्थ सूत्र मोदयादचेलपरीषहः, अरत्युदयादरतिपरीषहः उच्यते, स्त्रीवेदोदयात्-स्त्रीपरीषहः भयोदयात्स्थानाऽसे वित्वलक्षणो निषद्यापरीषहः क्रोधोयाद्-आक्रोशपरीषहा, मानोदयाद्-याश्चापरीषहः लोभोदयात्-सत्कापुरपरीषहः सम्भवति । तथाचोक्तं व्याख्यापज्ञप्ती भगवतीमत्रे ८-शतके ८-उद्देशके-'चरित्त मोहणिज्जेणं भंते ! कम्मे कइ परिसहा समोयरंति ? गोयमा ! सत्तपरीसहा समोयरंति तं जहा-अरती अचेल इत्थी निसीहिया जायणा य अकोसे सकार पुरकारे चरित्तमोहमि सत्तेते ॥१॥ इति, चारित्रमोहनीये खलु भदन्त ! कर्मणि कति परीपहाः समवतरन्ति ? गौतम ! सप्तपरीषहाः समवतरन्ति, तद्यथा. 'अरति, रचेला स्त्री, निषद्या, याचना, च-आक्रोशः सत्कार पुरस्कार चारित्रमोहे सप्तते । १॥ इति ॥१४॥ है। इस चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से अरनि आदि सात परीषह होते हैं। जुगुप्सा मोह कर्म के उदय से अचेल परीषह होता है, अरति कर्म के उदय से अरतिपरीषह होता है, पुरुषवेद के उदय से स्त्रीपरीषह होता है, भय के उदय से स्थान का सेवन रूप निषधापरी वह होता है, क्रोध के उदय से आक्रोशपरीषह होता है, मान के उदय से याचनापरीषह होता है और लोम के उदय से सत्कार पुरस्कार परी. षह उत्पन्न होता है।
भावतीसूत्र के शतक ८ के उद्देशक ८ में कहा है-'भगवन् ! चारित्रमोहनीय कर्म के उदघ से कितने परीषद होते है ?
उत्तर-हे गौतम ! सात परीषद उत्पन्न होते हैं, वे यह हैं(१) अति, अचेल, स्त्री, निषद्या, याचना और आक्रोश । चारित्रमोहनीय कर्म के होने पर ये सात परीषह होते हैं ॥१४॥ અરતિ વગેરે સાત પરીષ થાય છે જુગુ મેહ કર્મના ઉદયથી અલ પરીષહ થાય છે, અરતિકર્મના ઉદયથી અરતિપરીષહ થાય છે, પુરૂષદના ઉદયથી સ્ત્રી પરીષ થાય છે, ક્રોધના ઉદયથી આક્રોશપરીષહ થાય છે, માનના ઉદયથી યાચનાપરીષ ડ થ ય છે અને તેમના ઉદયથી સ ક પુરસ્કા૨પરીવડ ઉત્પન્ન થાય છે.
ભગવતીસૂત્રના શતક ૮ના ઉદ્દેશક ૮માં કહ્યું છે–“ભગવાન ! ચારિત્રમહનીય કર્મના ઉદયથી કેટલા પરીષહ હોય છે?
उत्तर-गौतम ! सात ५रीष अपन्न थाय छ, त मा रीत-(१) ५२ति (२) अयेत, (3) श्री (४) पिया (५) यायना (6) मा भने (૭) સત્કાર પુરસ્કાર ચારિત્ર મિહનીય કર્મને ઉદય થવાથી આ સાત परीष थाय छ, ॥१४॥
श्री तत्वार्थ सूत्र : २