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________________ ॥ श्री वीतरागाय नमः॥ श्री जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री घासीलालबतिविरचित दीपिका-निर्युक्त्याख्यया व्याख्यया समलकृतम् हिन्दी-गुर्जरभाषानुवादसहितम् ॥श्री-तत्वार्थसूत्रम्॥ (द्वितीयो भागः) षष्ठोध्यायः मूलम्-मण-वय-काय जोगाई आसवो ॥१॥ छाया-'मनोवच:काययोगादिरासका ॥१॥ तत्वार्थदीपिका-जीवाजीवाय बंधोय-पुण्णं पावाऽऽसवो वहा । ___संवरो निज्जरा मोक्खो-संतेए तहिया नव ॥१॥ इत्युत्तराध्ययनसूत्रानुसारेण क्रमशो जीवा-जीव-बन्ध-पुण्य-पापानि पञ्च तत्वानि पश्चाऽध्यायेषु प्ररूपितानि, सम्पति-क्रममाप्तं षष्ठमास्रवतत्त्वं प्ररूपयितुं षष्ठाध्यायं प्रारभते-'मणवयकाय जोगाई आसवो' इति । ____मनोवचाकाययोगादिः-मनोयोगः१ बचोयोगार काययोगः३ तदादिः तत्म छट्ठा अध्याय का प्रारंभ __ 'मण-वय-कायजोगा'-इत्यादि । मनोयोग, वचनयोग, काययोग आदिको आस्रव कहते हैं ॥१॥ तत्वार्थदीपिका-जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष, ये नौ तव हैं। उत्तराध्ययनसूत्र के इस कथन के अनुसार क्रम से जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य और पाप, इन पांच तत्त्वों का पांच अध्यायों में निरूपण किया गया। अब अनुक्रम से प्राप्त छठे आत्रय तत्वकी प्ररूपणा करने के लिए छठा अध्याय प्रारम्भ किया जाता है ७ अध्ययनना प्रा'मण-वय-कायजोगाई आसवो' સૂત્રાર્થ–મનેયેગ, વચનગ, કાગ આદિને આસ્રવ કહે છે તત્વાર્થદીપિકા-જીવ, અજીવ, બબ્ધ, પુષ્ય, પાપ, આસ્ટવ, સંવર, નિર્જરા તથા મો ક્ષ આ નવ તત્વ છે. ઉત્તરાધ્યયન સૂત્રના આ કથન અનુસાર કમથી જીવ, અજીવ, બધ, પુણ્ય આ પાપ, અને પાંચ તત્તનું પાંચ અધ્યા માં નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું. હવે કુમથી પ્રાપ્ત છઠા આસ્રવતવની પ્રરૂપણા કરવાના આશયથી છઠે અધ્યાય પ્રારંભ કરવામાં આવે છે. त०१ श्री तत्वार्थ सूत्र : २
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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