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________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ.७ ६.१ संवरस्वरूपनिरूपणम् १०७ न्द्रियनिग्रहणम् १५, मनोवाकायानां वशित्वम् १८, भण्डोपकरणादीनां यतनयाऽऽदानं निक्षेपणं च १९ सूचीकुशाग्र मात्र वस्तुनामपि यतनया ग्रहणं स्थापनं२०, चेति विंशति २० । पञ्चसमिति ५ त्रिगुप्ति ८ सुधादिद्वाविंशति परिषह सहन ३०, दशविध श्रमणधर्म ४० द्वादशभावना ५२ सामायिकादि पश्चचारित्र ५७ स. पश्चाशत् एवं सर्वसंकलनया भावसंवर, सप्तसप्ततिविधो भवतीति ।।पू० १॥ मूलम्-तस्स हेउणो समिइ-गुत्ति-धम्मानुपेहा परीसहजया।। छाया--तस्य हेतवः समिति-गुप्ति-धर्माऽनुपेक्षा-परीपहजयाः ॥२॥ तत्वार्थदीपिका:-पूर्वसूत्रे शुमाऽशुभकर्मागमन मार्गलक्षणाऽऽस्रवनिरोध १० श्रोत्र आदि पांच इन्द्रियों का निग्रह करना १५, मनवचन और काया को वश में रखना १८ भाण्डोरकरण आदिको यतना से उठाना और यतना से ही रखना १९, सूई तथा कुश-दर्भ के अग्रभागमात्र भी किसी वस्तु को यातना से रखना और यतना से ही उठाना २०, ये वीस तथा पांच समिति ५ तीन गुप्ति ८ क्षुधा आदि बाईस परीषहों को सहना ३० दश प्रकार का श्रमण धर्म ४० बारह भावना ५२, और सामायिक आदि ५ पांच चारित्र ५७, इस प्रकार सत्तावन ५७, ऐसे सब मिलाकर भाव संवर के सतहत्तर ७७ भेद होते है ॥१॥ सूत्रार्थ--'तस्स हे उणो समिइ' इत्यादि। समिति, गुप्ति, धर्म, अनुप्रेक्षा और परीषहजय, संवर के कारण है तत्यार्थदीपिका--पूर्वसूत्र में शुभाशुभ कमों के आगमन के मार्ग ઈન્દ્રિને નિગ્રહ કર (૧૫) મન, વચન અને કાયાને વશમાં રાખવા (૧૮) ભાણોપકરણ આદિને યતનાપૂર્વક ઉપાડવા અને જતના પૂર્વક જ રાખવા (૧૯) સંય તથા કુશ-દર્ભના અગ્રભાગ જેટલી કઈ પણ વસ્તુને યતના પૂર્વક રાખવી અને તેનાથી જ ઉપાડવી (૨૦) આ વીસ, તથા પાંચ સમિતિ (५) ३ गुति (८) क्षुधा माहि मावीस परीषडाने सहन ४२११ (३०) ४श પ્રકારને શમણુધર્મ (૪૦) બાર પ્રકારની ભાવના (૫૨) અને સામાયિક વગેરે પાંચ ચારિત્ર (૫૭) આવી રીતે સત્તાવન, આ બધાં મળીને ભાવ સંવરના सित्यात्तर (७७) : थाय है. ॥१॥ 'तस्स हे उणो समिइ' (याह સૂત્રાર્થ–સમિતિ, ગુપ્તિ, ધર્મ, અનુપ્રેક્ષા અને પરિષહ સંવરના કારણ છે પર તવાથદીપિકા–પૂર્વસત્રમાં શુભાશુભ આગમનના માર્ગ રૂપ श्री तत्वार्थ सूत्र: २
SR No.006386
Book TitleTattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages894
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size49 MB
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